Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अपजत्तगब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणए ?
गोयमा ! पजत्तगब्भवक्कंतिय जाव परिणए वा, अपजत्तगब्भवक्कंतिय जाव परिणए ।१।
[६४ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिक-शरीर-कायप्रयोग परिणत होता है तो क्या वह पर्याप्त-गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा अपर्याप्तगर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ?
[६४ उ.] गौतम ! वह पर्याप्त-गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा अपर्याप्त-गर्भजमनुष्यपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है।
६५. जदि ओरालियमीसासरीरकायप्पओगपरिणए किं एगिंदियओरालियमीसासरीरकायप्पओगपरिणए ? बेइंदिय जाव परिणए जाव पंचेंदियओरालिय जाव परिणए ?
गोयमा ! एगिंदियओरालिय एवं जहा ओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणएणं आलावगो भणिओ तहा ओरालियमीसासरीरकायप्पओगपरिणएण वि आलावगो भाणियव्वो, नवंर बायरवाउक्काइयगब्भक्कंतियपंचिंदियतिरिक्खजोणिय-गब्भवक्कंतियमणुस्साण य एएसि णं पजत्तापजत्तगाणं, सेसाणं अपज्जत्तगाणं।२।
[६५ प्र.] यदि एक द्रव्य, औदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह एकेन्द्रियऔदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, द्वीन्द्रिय-औदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-औदारिक-मिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ?
[६५ उ.] गौतम ! वह एकेन्द्रिय-औदारिक़मिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा द्वीन्द्रियऔदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-औदारिकमिश्र-शरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है। जिस प्रकार पहले औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत के आलापक कहे हैं, उसी प्रकार औदारिकमिश्रकायप्रयोगपरिणत के भी आलापक कहने चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि बादरवायुकायिक, गर्भज पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक और गर्भज मनुष्यों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक के विषय में और शेष सभी जीवों के अपर्याप्तक के विषय में कहना चाहिए।
६६. जदि वेउव्वियसरीरकायप्पयोगपरिणए किं एगिदियवेउव्वियसरीरकायप्पओगपरिणए जाव पंचिंदियवेउव्विसरीर जाव परिणए ?
गोयमा-! एगिदिय जाव परिणए वा पंचिंदिय जाव परिणए।
[६६ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, वैक्रियशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह एकेन्द्रियवैक्रियशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है ?
[६६ उ.] गौतम ! वह एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है।
६७. जइ एगिंदिय जाव परिणए किं वाउक्काइयएगिंदिय जाव परिणए ? अवाउक्काइय