Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ६९. जदि आहारगसरीरकायप्पओगपरिणए किं मणुस्साहारगसरीरकायप्पओगपरिणए ? अमणुस्साहारग जाव प०?
एवं जहा ओगाहणसंठाणे जाव इड्ढिपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपजत्तगसंखेजवासाउय जाव परिणए, नो अणिड्ढिपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपजत्तसंखेजवासाउय जाव प०।५।
[६९ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य आहारकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह मनुष्याहारकशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा मनुष्य-आहारकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ?
[६९ उ.] गौतम ! इस सम्बंध में जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के अवगाहनसंस्थान नामक (इक्कीसवें) पद में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी ऋद्धिप्राप्त-प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्कमनुष्यआहारकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, किन्तु अनृद्धि प्राप्त (आहारकलब्धि को अप्राप्त) प्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्य-मनुष्याहारक-शरीर-कायप्रयोगपरिणत नहीं होता तक कहना चाहिए।
७०. जदि आहारगमीसासरीरकायप्पयोग० किं मणुस्साहारगमीसासरीर० ? एवं जहा आहारगं तहेव मीसगं पि निरवसेसं भाणियव्वं।६।
[७० प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य आहारकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह मनुष्याहारकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा अमनुष्याहारकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ?
[७० उ.] गौतम ! जिस प्रकार आहारकशरीरकायप्रयोग-परिणत (एक द्रव्य) के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार आहारकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत के विषय में भी कहना चाहिए।
७१. जदि कम्मासरीरकायप्पओगप० किं एगिदियकम्मासरीरकायप्पओग० जाव पंचिंदियकम्मासरीर जाव प०?
- गोयमा ! एगिदियकम्मासरीरकायप्पओ० एवं जहा ओगाहणसंठाणे कम्मगस्स भेदो तहेव इहाविजाव पजत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयदेवपंचिंदियकम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए वा, अपजत्तसव्वट्ठसिद्धअणु० जाव परिणए वा ७। __[७१ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह एकेन्द्रियकार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-कार्मणशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है ? __[७१ उ.] गौतम ! वह एकेन्द्रिय-कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, इस सम्बंध में जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के (इक्कीसवें) अवगाहना संस्थानपद में कार्मण के भेद कहे गए हैं, उसी प्रकार यहाँ भी पर्याप्तसर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है (तक भेद कहना चाहिए।)