Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र असुरकमार-प्रयोग-परिणत पुद्गल यावत् स्तनितकुमार-प्रयोग-परिणत पुद्गल।
१४. एवं एतेणं अभिलावेणं अट्ठविहा वाणमंतरा पिसाया जाव गंधव्वा।
[१४] इसी प्रकार इसी अभिलाप (पाठ) से पिशाच (वाणव्यन्तरदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गल) से गन्धर्व (वाण० देव०-प्रयोग-परिणत पुद्गल) तक आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देव (प्रयोग-परिणत पुद्गल) कहने चाहिए।
१५. जोइसिया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा—चंदविमाणजोतिसिय० जाव ताराविमाणजोतिसिय-देव०।
[१५] (इसी प्रकार के अभिलापवत्) ज्योतिष्कदेवप्रयोग-परिणत पुद्गल भी पांच प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार—चन्द्रविमानज्योतिष्कदेव (—प्रयोग परिणत) यावत् ताराविमान-ज्योतिष्कदेव (प्रयोगपरिणत पुद्गल)।
१६. [१] वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—कप्पोवग० कप्पातीतगवेमाणिय०। _ [१६-१] वैमानिकदेव (-प्रयोग-परिणत पुद्गल) के दो प्रकार कहे गए हैं, यथा—कल्पोपपन्नकवैमानिकदेव (—प्रयोग-परिणत पुद्गल) और कल्पातीतवैमानिकदेव (—प्रयोग-परिणत पुद्गल)।
[२] कप्पोवगा दुवालसविहा पण्णत्ता, तं जहा—सोहम्मकप्पोवग० जाव अच्चुयकप्पोवगवेमाणिया।
[१६-२] कल्पोपपन्नक वैमानिकदेव० बारह प्रकार के कहे गए हैं, यथा—सौधर्मकल्पोपपन्नक से अच्युतकल्पोपन्नक देव तक। (इन बारह प्रकार के वैमानिक देवों से सम्बन्धित प्रयोग परिणत पुद्गल १२ प्रकार के होते हैं।)
[३] कप्पातीत दुविहा पण्णत्ता, तं. जहा—गेवेज्जगकप्पतीतवे० अणुत्तरोववाइयकप्यातीतवे०।
[१६-३] कल्पातीत वैमानिकदेव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा—प्रैवेयककल्पातीत-वैमानिकदेव और अनुत्तरोपपातिककल्पातीत-वैमानिकदेव। (इन्हीं दो प्रकार के कल्पातीत वैमानिकदेवों से सम्बन्धित प्रयोग-परिणत-पुद्गल दो प्रकार के कहने चाहिए।)
[४] गेवेजगकप्पातीतगा नवविहा पण्णत्ता, तं जहा–हेट्ठिमहेट्ठिमगेवेजगकप्पातीतगा जाव उवरिमउवरिमगेविजगकप्पतीतया।
[१६-४] ग्रैवेयककल्पातीत वैमानिकदेवों के नौ प्रकार कहे गए हैं, यथा—अधस्तन-अधस्तन (सबसे नीचे कि त्रिक में नीचे का) ग्रैवेयककल्पातीत-वैमानिकदेव यावत् उपरितन-उपरितन (सबसे ऊपर की त्रिक में सबसे ऊपर वाले) ग्रैवेयक-कल्पातीत-वैमानिकदेव। (इन्हीं नामों से सम्बन्धित प्रयोग-परिणत