Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
चाहिए।
१९.[१] बेंदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा । गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्तगबेंदियपयोगपरिणया य, अपजत्तग जाव परिणया य।
[१९-१ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? । [१९-१ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, जैसे—पर्याप्तक द्वीन्द्रिय-प्रयोग परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक द्वीन्द्रिय-प्रयोग परिणत पुद्गल।
[२] एवं तेइंदिया वि। [१९-२] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार के विषय में भी जान लेना चाहिए। [३] एवं चउरिंदिया वि। [१९-३] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार के विषय में समझ लेना चाहिए। २०.[१] रयणप्पभापुढविनेरइय० पुच्छा।
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—पजत्तगरयणप्पभापुढवि जाव परिणया य, अपजत्तग जाव परिणया य।
[२०-१ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
[२०-१ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार—पर्याप्तक रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिकप्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक रत्नप्रभा-नैरयिक-प्रयोग-परिणत पुद्गल।
[२] एवं जाव अहेसत्तमा ।।
[२०-२] इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमीपृथ्वी-नैरयिक-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के (प्रत्येक के दोदो) प्रकारों के विषय में कहना चाहिए।
२१.[१] सम्मुच्छिमजलचरतिरिक्खि० पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पजत्तग० अपज्जतग०। एवं गब्भवक्कंतिया वि।
[२१-१ प्र.] भगवन् ! सम्मूर्च्छिम-जलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल प्रकारों के लिए पृच्छा है।
[२१-१ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, जैसे—पर्याप्तक-सम्मूर्च्छिम-जलचर-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक-सम्मूर्छिम-जलचर-तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत
पुद्गल।
इसी प्रकार गर्भज-जलचर सम्बन्धी प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार के विषय में जान लेना चाहिए।