Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-१
२१३ पुद्गलों के नौ प्रकार कह देने चाहिए।)
[५] अणुत्तरोववाइयकप्पातीतगवेमाणियदेवपंचिदियपयोगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता ? ___ गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा—विजयअणुत्तरोववाइय० जाव परिणया जाव सव्वट्ठसिद्ध-अणुत्तरोववाइयदेवपंचिंदिय जाव परिणता। १ दंडगो।
[१६-५ प्र.] भगवन् ! अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[१६-५ उ.] गौतम ! वे (अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेवसम्बन्धी प्रयोग-परिणत पुद्गल) पाँच प्रकार के कहे गए हैं जैसे—विजय-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल यावत् सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल।
प्रथम दण्डक पूर्ण हुआ द्वितीय दण्डक
१७. [१] सुहुमपुढविकाइयएगिंदियपयोगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा–पजत्तगसुहुमपुढविकाइय जाव परिणया य अपजत्तगसुहुमपुढविकाइय जाव परिणया य। [ केई अपजत्तगं पढम भणंति, पच्छा पजत्तगं।]
[१७-१ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[१७-१ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-पर्याप्तक-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रियप्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल।।
[कई आचार्य अपर्याप्तक (वाले प्रकार) को पहले और पर्याप्तक (वाले प्रकार) को बाद में कहते हैं।] [२] बादरपुढ़विकाइयएगिंदिय०? एसं चेव।
[१७-२] इसी प्रकार बादरपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल के भी (उपर्युक्तवत्) दो भेद कहने चाहिए।
१८. एवं जाव वणस्सइकाइया। एक्केक्का दुविहा-सुहुमा य बादरा य, पज्जत्तगा अपज्जत्तगा य भाणियव्वा।
[१८] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक (एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) तक प्रत्येक के सूक्ष्म और बादर ये दो भेद और फिर इन दोनों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक भेद (वाले प्रयोग-परिणत पुद्गल) कहने