Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
२४. एवं एतेणं अभिलावेणं दुएणं भेदेणं पिसाया य जाव गंधव्वा, चंदा जाव ताराविमाणा, सोहम्मकप्पोवगा जाव अच्चुओ, हिट्ठिमहिट्ठिमगेविज्जकप्पातीत जाव उवरिमउवरिमगेविज्ज०, विजयअणुत्तरो० जाव अपराजिय० ।
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[२४] इसी प्रकार इसी अभिलाप से पिशाचों से लेकर गन्धर्वों तक (आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देवों के प्रयोग-परिणत-पुद्गलों) के तथा चन्द्र से लेकर तारा पर्यन्त (पाँच प्रकार के ) ज्योतिष्क देवों के प्रयोगपरिणत-पुद्गलों) के एवं सौधर्मकल्पोपपन्नक से अच्युतकल्पोपपन्नक तक के और अधस्तन - अधस्तन ग्रैवेयक कल्पातीत से लेकर उपरितन - उपरितन ग्रैवेयक कल्पातीत देव - प्रयोग - परिणत पुद्गलों के एवं विजयअनुत्तरोपपातिक कल्पातीत से अपराजित - अनुत्तरोपपातिक कल्पातीतदेव प्रयोग - परिणत पुद्गलों के प्रत्येक के पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो-दो भेद कहने चाहिए।
२५. सव्वट्ठसिद्धकप्पातीय० पुच्छा ।
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगसव्वट्टसिद्धअणुत्तरो० अपज्जत्तगसव्वट्ठ परिणया वि । २ दंडगा ।
[२५ प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीतदेव प्रयोग- परिणत पुद्गलों के कितने प्रकार हैं ?
[२५ उ.] गौतम ! वे प्रकार के कहे गए हैं, यथा— पर्याप्तक - सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिककल्पातीतदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक- सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-देव-प्रयोगपरिणत पुद्गल ।
दूसरा दण्डक पूर्ण हुआ ।
तृतीय दण्डक
२६. जे अपज्जत्तासुहुमपुढवीकाइयएगिंदियपयोगपरिणया ते ओरालिय-तेया- कम्मगसरीरप्पयोगपरिणया, जे पज्जत्तसुहुम० जाव परिणया ते ओरालिय- तेया- कम्मगसरीरप्पयोगपरिणया । एवं जाव चउरिंदिया पज्जत्ता । नवरं जे धज्जत्तगबादरवाउकाइयएगिंदियपयोगपरिणया ते ओरालियवेव्विय- तेया- कम्मसरीर जाव परिणता । सेसं तं चेव ।
[२३] जो पुद्गल अपर्याप्त-सूक्ष्म- पृथ्वीकाय-एकेन्द्रिय-प्रयोग- परिणत है, वे औदारिक, तैजस और कार्मण-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं। जो पुद्गल पर्याप्तक-सूक्ष्म-पृथ्वीकाय - एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे भी औदारिक, तैजस और कार्मण- शरीर-प्रयोग- परिणत हैं।
इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रियपर्याप्तक तक के ( प्रयोग - परिणत पुद्गलों के विषय में ) जानना चाहिए। परन्तु विशेष इतना है कि जो पुद्गल पर्याप्त - बादर - वायुकायिक- एकेन्द्रिय-प्रयोग - परिणत हैं, वे औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण - शरीर - प्रयोग - परिणत हैं । (क्योंकि वायुकायिक में वैक्रिय शरीर भी पाया जाता