Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
त्रिकोण | चउरंस — चतुरस्र - चौकोर (चतुष्कोण) । तित्तरस—– तिक्त - तीखा रस। अंबिल — आम्ल - खट्टा । कसाय — कसैला । जहाणुपुवीए- — यथाक्रम से । मिश्रपरिणत-पुद्गलों का नौ दण्डकों द्वारा निरूपण
४३. मीसापरिणया णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा — एंगिदियमीसापरिणया जाव पंचिदियमीसापरिणया । [४३ प्र.] भगवन् ! मिश्रपरिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[४३ उ.] गौतम ! वे पांच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – एकेन्द्रिय - मिश्रपरिणत पुद्गल यावत् पंचेन्द्रिय मिश्रपरिणत पुद्गल ।
४७. एगिंदियमीसापरिणया णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! एवं जहा पओगपरिणएहिं नव दंडगा भणिया एवं मीसापरिणएहि वि नव दंडगा भाणियव्वा, तहेव सव्वं निरवसेसं, नवरं अभिलावो 'मीसापरिणया' भाणियव्वं, सेसं तं चेव, जाव जे पज्जत्तासव्वट्टसिद्धअणुत्तरो जाव० आययसंठाणपरिणया वि ।
[४७ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय मिश्रपुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[४७ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रयोगपरिणत पुद्गलों के विषय में नौ दण्डक कहे गए हैं; उसी प्रकार मिश्र-परिणत पुद्गलों के विषय में भी नौ दण्डक कहने चहिए और सारा वर्णन उसी प्रकार करना चाहिए। विशेषता यह है कि प्रयोग- परिणत के स्थान पर मिश्र - परिणत कहना चाहिए। शेष समस्त वर्णन पूर्ववत् करना चाहिए; यावत् जो पुद्गल पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक हैं; वे यावत् आयत-संस्थानरूप से भी परिणत
हैं।
विवेचन — मिश्रपरिणत पुद्गलों का नौ दण्डकों द्वारा निरूपण - प्रस्तुत सूत्रद्वय (सू. ४६-४७) में प्रयोगपरिणत पुद्गलों के भेद-प्रभेद की तरह मिश्रपरिणत पुद्गलों के भी भेद-प्रभेद का अतिदेशपूर्वक निरूपण किया गया है।
विस्त्रसापरिणत पुद्गलों के भेद-प्रभेदों का निर्देश
४५. वीससापरिणया भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा—वण्णपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया । जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा — कालवण्णपरिणया जाव सुक्किल्लवण्णपरिणया । जे गंधपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सुब्भिगंधपरिणया वि
१. (क) भगवतीसूत्र (गुजराती अनुवादयुक्त) खण्ड-३, पृ. ४२ से ४३ तक
(ख) भगवती ( हिन्दीविवेचनयुक्त) भाग - ३, पृ. १२३६ से १२५२ तक