Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जोणिय-पंचिंदिय० खहचरतिरिक्खपंचिंदिय०।
[१०-१ प्र.] अब प्रश्न है—तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के (प्रकारों के) विषय में।
[१०-१ उ.] गौतम ! तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल तीन प्रकार के कहे गए हैं। जैसे कि—(१) जलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल, (२) स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और (३) खेचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल।
[२]जलयरतिरिक्खजोणियपओग० पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–सम्मुच्छिमजलचर० गब्भवक्कंतियजलचर०।
[१०-२ प्र.] भगवन् ! जलचर तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[१०-२ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं। जैसे कि (१) सम्मूर्च्छिम जलचर-तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और (२) गर्भव्युत्क्रान्तिक (गर्भज) जलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियप्रयोग-परिणत पुद्गल।
[३] थलचरतिरिक्ख० पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—चउप्पदथलचर० परिसप्पथलचर० ।
[१०-३ प्र.] भगवन् ! स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[१०-३ उ.] गौतम ! (स्थलचरतिर्यञ्च-योनिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और परिसर्पस्थलचरतिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल।
[४] चउप्पदथलचर० पुच्छा।
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—सम्मुच्छिमचउप्पदथलचर० गब्भवक्कंतियचउप्पयथलचर०।
[१०-४ प्र.] अब मेरा प्रश्न है कि चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के हैं ?
__ [१०-४ उ.] गौतम ! वे (पूर्वोक्त पुद्गल) दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार सम्मूर्छिम चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और गर्भज-चतुष्पद-स्थलचरतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल।