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________________ २१० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जोणिय-पंचिंदिय० खहचरतिरिक्खपंचिंदिय०। [१०-१ प्र.] अब प्रश्न है—तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के (प्रकारों के) विषय में। [१०-१ उ.] गौतम ! तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल तीन प्रकार के कहे गए हैं। जैसे कि—(१) जलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल, (२) स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और (३) खेचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल। [२]जलयरतिरिक्खजोणियपओग० पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–सम्मुच्छिमजलचर० गब्भवक्कंतियजलचर०। [१०-२ प्र.] भगवन् ! जलचर तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [१०-२ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं। जैसे कि (१) सम्मूर्च्छिम जलचर-तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और (२) गर्भव्युत्क्रान्तिक (गर्भज) जलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियप्रयोग-परिणत पुद्गल। [३] थलचरतिरिक्ख० पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—चउप्पदथलचर० परिसप्पथलचर० । [१०-३ प्र.] भगवन् ! स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [१०-३ उ.] गौतम ! (स्थलचरतिर्यञ्च-योनिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और परिसर्पस्थलचरतिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल। [४] चउप्पदथलचर० पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—सम्मुच्छिमचउप्पदथलचर० गब्भवक्कंतियचउप्पयथलचर०। [१०-४ प्र.] अब मेरा प्रश्न है कि चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के हैं ? __ [१०-४ उ.] गौतम ! वे (पूर्वोक्त पुद्गल) दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार सम्मूर्छिम चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और गर्भज-चतुष्पद-स्थलचरतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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