Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र परिणत होती हैं, तब वे मिश्रपरिणत कहलाती हैं, जबकि उनमें प्रयोग और विस्रसा, दोनों परिणामों की विवक्षा की गई हो। विस्रसापरिणाम को छोड़कर अकेले प्रयोग-परिणामों की विवक्षा हो, तब उक्त वर्गणाएँ प्रयोगपरिणत ही कहलाएँगी। नौ दण्डकों द्वारा प्रयोग-परिणत पुद्गलों का निरूपण प्रथम दण्डक
४. पयोगपरिणता णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगिंदियपयोगपरिणता बेइंदियपयोगपरिणता जाव पंचिंदियपयोगपरिणता।
[४ प्र.] भगवन् ! प्रयोग परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए है ?
[४ उ.] गौतम ! (प्रयोग-परिणत पुद्गल) पांच प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार (१) एकेन्द्रियप्रयोग-परिणत, (२) द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत यावत्, (३) त्रीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत, (४) चतुरिन्द्रिय-प्रयोगपरिणत (५) पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल।
५. एगिदियपयोगपरिणता णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता?
गोयमा ! पंचविहा, तं जहा–पुढविक्काइयएगिदियपयोगपरिणता जाव वण्णस्सतिकाइयएगिदियपयोगपरिणता।
[५ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[५ उ.] गौतम ! (एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) पाँच प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकारपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग परिणत पुद्गल।
६.[१] पुढविक्काइयएगिंदियपयोगपरिणता णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविक्काइयएगिंदियपयोगपरिणता य बादरपुढविक्का-इयएगिंदियपयोगपरिणता य।
[६-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? _ [६-१ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, जैसे—सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और बादरपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल ।
[२] आउक्काइयएगिंदियपयोगपरिणता एवं चेव।
[६-२] इसी प्रकार अप्कायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल भी इसी तरह (दो प्रकार के-सूक्ष्म १. भगवती अ. वृत्ति, पत्रांक ३२८