Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-१ और बादर-रूप) कहने चाहिए।
[३] एवं दुयओ भेदो जाव वणस्सतिकाइया य।
[६-३] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल तक प्रत्येक के दो-दो भेद (सूक्ष्म और बादर-रूप) कहने चाहिए।
७.[१] बेइंदियपयोगपरिणताणं पुच्छा। गोयमा ! अणेगविहा पण्णत्ता। [७-१ प्र.] भगवन् ! अब द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल के प्रकारों के विषय में पृच्छा है। [७-१ उ.] गौतम ! वे (द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) अनेक प्रकार के कहे गए हैं। [२] एवं तेइंदिय-चउरिदियपयोगपरिणता वि।
[७-२] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों और चतुरिन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार के विषय में (अनेक विध) जानना चाहिए।
८. पंचिंदियपयोगपरिणताणं पुच्छा।
गोयमा! चतुव्विहा पण्णत्ता, तं जहा—नेरतियपंचिंदियपयोगपरिणता, तिरिक्ख०, एवं मणुस्स०, देवपंचिंदिय०।
[८ प्र.] अब (गौतमस्वामी की) पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के (प्रकार के) विषय में पृच्छा है।
[८ उ.] गौतम ! (पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) चार प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार(१) नारक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल, (२) तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल, (३) मनुष्यपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और (४) देव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल ।
९. नेरइयपंचिंदियपयोग० पुच्छा।
गोयमा ! सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा–रतणप्पभापुढविनेरइयपंचिंदियपयोगपरिणता वि जाव अहेसत्तमपुढविनेरइयपंचिंदियपयगपरिणता वि।
[९ प्र.] (सर्वप्रथम) नैरयिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के (प्रकार के) विषय में पृच्छा है।
[९ उ.] गौतम ! (नैरयिक-पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत-पुद्गल) सात प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार-रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल यावत् अध:सप्तमा (तमस्तमा)- पृथ्वीनैरयिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल।
१०.[१] तिरिक्खजोणियपंचिंदियपयोगपरिणताणं पुच्छा। गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा—जलचरपंचिंदियतिरिक्खजोणिय० थलचरतिरिक्ख