Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सप्तम शतक : उद्देशक-८ न्यूनाधिक रूप से सभी छद्मस्थ संसारी जीवों में पाई जाती है। नैरयिकों के सतत अनुभव होने वाली दस वेदनाएँ
६. नेरइया दसविहं वेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा–सीतं उसिणं खुहं पिवासं कंडु परझं जरं दाहं भयं सोगं।
[७] नैरयिक जीव दस प्रकार की वेदना का अनुभव करते हुए रहते हैं। वह इस प्रकार -(१) शीत, (२) उष्ण, (३) क्षुधा, (४) पिपासा, (५) कण्डू (खुजली), (६) पराधीनता, (७) ज्वर, (८) दाह, (९) भय और (१०) शोक।
विवेचन—नैरयिकों को सतत अनुभव होने वाली दस वेदनाएँ—प्रस्तुत सूत्र में शीत आदि दस वेदनाएँ, जो नैरयिकों को प्रत्यक्ष अनुभव में आती है, बताई गई हैं। हाथी और कुंथुए को समान अप्रत्याख्यानी क्रिया लगने की प्ररूपणा
८.[१] से नूणं भंते ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समा अपच्चक्खाणकिरिया कजति ? हंता, गोयमा ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य जाव कज्जति।
[८-१ प्र.] भगवन् ! क्या वास्तव में हाथी और कुंथुए के जीव को समान रूप में अप्रत्यख्यानिकी क्रिया लगती है?
[८-१ उ.] हाँ, गौतम ! हाथी और कुंथुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान लगती है। [२] से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव कज्जति ? गोयमा ! अविरतिं पडुच्च । से तेणढेणं जाव कज्जति।
[८-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि हाथी और कुंथुए के यावत् क्रिया समान लगती है ?
_[८-२ उ.] गौतम ! अविरति की अपेक्षा (हाथी और कुंथुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया) समान लगती है।
विवेचन—हाथी और कुंथुए को समान अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लगने की प्ररूपणा—प्रस्तुत सूत्र में हाथी और कुंथुए को अविरति की अपेक्षा अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान रूप से लगने की प्ररूपणा की गई है, क्योंकि अविरति का सद्भाव दोनों में समान है। आधाकर्मसेवी साधु को कर्मबंधादि-निरूपणा
९. आहाकम्मं णं भंते ! भुंजमाणे किं बंधति ? किं पकरेति ? किं चिणाति ? किं उवचिणाति ? एवं जहा पढमें सते नवमे उद्देसए (सू. २६) तहा भाणियव्वं जाव सासते, पंडिते, पंडितत्तं