Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र असासयं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० !
॥ सत्तमसए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो॥ [९ प्र.] भगवन् ! आधाकर्म (आहारादि) का उपयोग करने वाला साधु क्या बांधता है ? क्या करता हैं ? किसका चय करता है और किसका उपचय करता है ?
[९ उ.] गौतम ! (आधाकर्म आहारादि का उपयोग करने वाला साधु आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मों की प्रकृतियों को, यदि वे शिथिल बंध से बंधी हुई हों तो गाढ़ बंध वाली करता है, यावत् बार-बार संसार-परिभ्रमण करता है।) इस विषय में सारा वर्णन प्रथम शतक के नौवे उद्देशक (सू. २६) में कहे अनुसार-'पण्डित शाश्वत है और पण्डितत्व अशाश्वत है' यहाँ तक कहना चाहिए। ..
_ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार का है;' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं।
विवेचन—आधाकर्मसेवी साधु को कर्मबंधादि निरूपण—प्रस्तुत सूत्र में प्रथम शतक के ९वें उद्देशक के अतिदेशपूर्वक आधाकर्मदोषसेवन का दुष्फल बताया गया है।
आधाकर्म—आहार, पानी आदि कोई भी पदार्थ जो साधु से निमित्त बनाए जाएँ, वे आधाकर्मदोष युक्त हैं। इसका विशेष विवरण प्रथम शतक के नौवें उद्देशक से जान लेना चाहिए।
॥ सप्तम शतक : अष्टम उद्देशक समाप्त॥