Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१४ उ.] हे गौतम ! (वजी गण या वंश का विदेहपुत्र या) वज्री-इन्द्र और विदेहपुत्र (कूणिक) एवं असुरेन्द्र असुरराज चमर जीते और नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी (ये अठारह गण) राजा हार गए।
१५. तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगामं उवहितं०, सेसंजहा महासिलाकंटए नवरं भूताणंदे हत्थिराया जाव रहमुसलं संगामं ओयाए, पुरतो य से सक्के देविंद देवराया। एवं तहेव जाव चिट्ठति, मग्गतो य से चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया एगं महं आयसं किढिणपडिरूवगं विउव्वित्ताणं चिट्ठति, एवं खलु तओ इंदा संगामं संगामेति, तं जहां-देविंदे मणुइंदे असुरिंदे य। एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया जइत्तए तहेव जाव दिसो दिसिं पडिसेहेत्था। ___ [१५] तदनन्तर रथमूसल-संग्राम उपस्थित हुआ जान कर कूणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों (सेवकों) को बुलाया। इसके बाद का सारा वर्णन महाशिलाकण्टक की तरह यहाँ कहना चाहिए। इतना विशेष है कि यहाँ 'भूतानन्द' नामक हस्तिराज (पट्टहस्ती) है। यावत् वह कूणिक राजा रथमूलसंग्राम में उतरा। उसके आगे देवेन्द्र देवराज शक्र है, यावत् पूर्ववत् सारा वर्णन कहना चाहिए। उसके पीछे असुरेन्द्र असुरराज चमर लोह के बने हुए एक महान् किठिन (बांसनिर्मित तापस पात्र) जैसे कवच की विकुर्वणा करके खड़ा है। इस प्रकार तीन इन्द्र संग्राम करने के लिए प्रवृत्त हुए हैं । यथा—देवेन्द्र (शक्र), मनुजेन्द्र (कूणिक)
और असुरेन्द्र (चमर) । अब कूणिक केवल एक हाथी से सारी शत्रु-सेना को पराजित करने में समर्थ है। यावत् पहले कहे अनुसार उसने शत्रु राजाओं (की सेना) की दसों दिशाओं में भगा दिया।
१६. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चति 'रहमुसले संगामे रहमुसले संगामे' ?
गोयमा ! रहमुसले णं संगामे वट्टमाणे एगे रहे अणासए असारहिए अणारोहए समुसले महताजणक्खयं जणवहं जणप्पमई जणसंवट्टकप्पं रूहिरकद्दमं करेमाणे सव्वतो समंता परिधावित्था; से तेणढेणं जाव रहमुसले संगामे।
[१६ प्र.] भगवन् ! इस 'रथमूलसंग्राम' को रथमूलसंग्राम क्यों कहा जाता है ?
[१६ उ.] गौतम ! जिस समय रथमूसलसंग्राम हो रहा था, उस समय अश्वरहित, सारथि-रहित और योद्धाओं से रहित केवल एक रथ मूसलसहित अत्यन्त जनसंहार, जनवध, जन-प्रमर्दन और जनप्रलय (संवर्तक) के समान रक्त का कीचड़ करता हुआ चारों ओर दौड़ता था। इसी कारण उस संग्राम को 'रथमूसलसंग्राम' यावत् कहा गया है।
१७. रहमुसले णं भंते ! संगामे वट्टमाणे कति जणसयसाहस्सीओ वहियाओ? गोयमा ! छण्णउतिं जणसयसाहस्सीओ वहियाओ। [१७ प्र.] भगवन् ! जब रथमूसलसंग्राम हो रहा था, तब उसमें कितने लाख मनुष्य मारे गए? [१७ उ.] गौतम ! रथमूसलसंग्राम में छियानवै लाख मनुष्य मारे गए। १८. ते णं भंते ! मणुया निस्सीला जाव (सु. १३) उववन्ना ?