Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र "[५] तए णं से पुरिसे वरुणं णागणत्तुय एवं वयासी—पहण भो! वरुणा! णगणत्तुया ! पहण भो ! वरुणा ! णागणत्तुया ! तए णं से वरुणे णागणत्तुएं तं पुरिसं एवं वदासि-नो खलु मे कप्पति देवाणुप्पिया ! पुब्बिं अहयस्स पहणित्तए, तुमं चेव पुव्वं पहणाहि।
[२०-८] तब उस पुरुष ने वरुण नागनप्तक को इस प्रकार (ललकारते हुए) कहा—“हे वरुण नागनत्तुआ ! मुझ पर प्रहार कर, अरे वरुण नागनत्तुआ ! मुझ पर वार कर !" इस पर वरुण नागनत्तुआ ने उस पुरुष से यों कहा - "हे देवानुप्रिय ! जो मुझ पर प्रहार न करे, उस पर पहले प्रहार करने का मेरा कल्प (नियम) नहीं है। इसलिए तुम (चाहो तो) पहले मुझ पर प्रहार करो।"
__"[९] तए णं से पुरिसे वरुणेणं णागणत्तुएणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसति, परामुसित्ता उसुंपरामुसति, उसु परामुसित्ता ठाणं ठाति, ठाणं ठिच्चा आयतकण्णायतं उसुं करेति, आयतकण्णायतं उसुं करेत्ता वरुण णागणत्तुयं गाढप्पहारीकरेति।।
[२०-९] तदनन्तर वरुण नागनत्तुआ के द्वारा ऐसा कहने पर उस पुरुष ने शीघ्र ही क्रोध से लाल-पीला हो कर यावत् दांत पीसते हुए (मिसमिसाते हुए) अपना धनुष उठाया। फिर बाण उठाया फिर धनुष पर यथास्थान बाण चढ़ाया। फिर अमुक स्थान पर स्थित होकर धनुष को कान तक खींचा। ऐसा करके उसने वरुण नागनत्तुआ पर गाढ़ प्रहार किया।
"[१०] तए णं वरुणे णागणततुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धणु परामुसति, धणु परामुसित्ता उसुं परामुसति, उसुं परामुसित्ता आयतकण्णायतं उसुं करेति, आयतकण्णायतं उसुं करेत्ता तं पुरिसं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवयातो ववरोवेति।
[२०-१०] इसके पश्चात् उस पुरुष द्वारा किये गए गाढ प्रहार से घायल हुए वरुण नागनत्तुआ ने शीघ्र कुपित होकर यावत् मिसमिसाते हुए धनुष उठाया। फिर उस पर बाण चढ़ाया और उस बाण को कान तक खींचा। ऐसा करके उस पुरुष पर छोड़ा। जैसे एक ही जोरदार चोट से पत्थर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते है, उसी प्रकार वरुण नागनप्तृक ने एक ही गाढ़ प्रहार से उस पुरुष को जीवन से रहित कर दिया।
"[११] तए णं से वरुणे नागणत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकते समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्करपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु तुरए निगिण्हति, तुरए निगिण्हित्ता रहं परावत्तेइ, २ त्ता रहमुसलातो संगामातो पडिनिक्खमति, रहमुसलाओ संगामातो पडिणिक्खमेत्ता एगंतमंत अवक्कमति, एंगतमंतं अवक्कमित्ता तुरए निगिण्हति, निगिण्हित्ता रहं ठवेति, २ त्ता रहातो पच्चोरुहति, रहातो पच्चोरुहित्ता रहाओ तुरए मोएति, २ तुरए विसजेति, विसज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरेति, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहति, दब्भसं० दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकणिसण्णे करयल जाव कटु एवं वयासी—नमोऽत्थु णं अरहंताणं जाव संपत्ताणं । नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आइगरस्स जाव संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स। वंदामि णं भगवतं तत्थगतं इहगते, पाएउ मे से भगवं तत्थगते;जाव वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–पुट्वि पि णं मए समणस्स