Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१३२
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२० प्र.] पंचेन्द्रियतिर्यञ्च जीवों के विषय में भी यही प्रश्न है।
[२० उ.] गौतम ! पंञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी नहीं हैं, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं।
२१. मणुस्सा जहा जीवा। [२१] मनुष्यों के विषय में (औधिक) जीवों की तरह कथन करना चाहिए। २२. वाणमंतर-जोतिस-वेमाणिया जहा नेरइया। [२२] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में नैरयिक की तरह कहना चाहिए।
२३. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सव्वमूलगुणपच्चक्खाणीणं देसमूलगुणपच्चक्खाणीणं अपच्चक्खाणीण य कतरे कतरेहितो जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी। एवं अप्पाबहुगाणि तिण्णि वि जहा पढमिल्लए दंडए (सु. १४-१६), नवरं सव्वत्थोवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी असंखेजगुणा। ___ [२३ प्र.] भगवन् ! इन सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किन से अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? __ [२३ उ.] गौतम ! सबसे थोडे सर्वमूलप्रत्याख्यानी जीव हैं, उनसे असंख्यातगुणे देशमूलप्रत्याख्यानी जीव हैं और अप्रत्याख्यानी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं। इसी प्रकार तीनों-औधिक जीवों, पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों-का अल्पबहुत्व प्रथम दण्डक में कहे अनुसार करना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि देशमूलगुणप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च सबसे थोड़े हैं और अप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यंच उनसे असंख्येयगुणे हैं।
२४. जीवा णं भंते ! किं सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणी ? देसुत्तरगुणपच्चक्खाणी ? अपच्चक्खाणी?
गोयमा ! जीवा सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणी वि, तिण्णि वि।
[२४ प्र.] भगवन् ! जीव क्या सर्व-उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं, देश-उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं। अथवा अप्रत्याख्यानी हैं ?
[२४ उ.] गौतम ! जीव सर्व-उत्तरगणुप्रत्याख्यानी भी हैं, देश-उत्तरगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं। (अर्थात्-) तीनों प्रकार के हैं।
२५. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य एवं चेव। [२५] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों का कथन भी इसी तरह करना चाहिए।