Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन—जीवों की शाश्वतता-अशाश्वतता का अनेकान्तशैली से प्ररूपण—प्रस्तुत तीन सूत्रों में जीवों एवं चौबीस दण्डकों के विषय में शाश्वतता-अशाश्वतता का विचार स्याद्वादशैली में प्रस्तुत किया गया है।
आशय—द्रव्यार्थिकनय की दृष्टि से जीव (जीवद्रव्य) शाश्वत है, किन्तु विभिन्न गतियों एवं योनियों में परिभ्रमण करने और विभिन्न पर्याय धारण करने के कारण पर्यायार्थिकनय की दृष्टि से वह अशाश्वत है।
यद्यपि कोई एक नैरयिक शाश्वत नहीं है, क्योंकि तेतीस सागरोपम से अधिक काल तक कोई भी जीव नैरयिक पर्याय में नहीं रहता, किन्तु जगत् नैरयिक जीवों से शून्य कभी नहीं होता, अतएव संतति की अपेक्षा से उन्हें शाश्वत कहा गया है।
॥सप्तम शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त॥
१. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २९९