Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १७.[१] बेइंदिया एवं चेव। नवरं जिभिदिय-फासिंदियाइं पडुच्च।
[१७-१] इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीव भी भोगी हैं, किन्तु विशेषता यह है कि वे जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं।
[२] तेइंदिया वि एवं चेव। नवरं घाणिंदियं-जिब्भिंदिय-फासिंदियाइं पडुच्च।
[१७-२] त्रीन्द्रिय जीव भी इसी प्रकार भोगी हैं, किन्तु विशेषता यह है कि वे घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं।
[३] चउरिदियाणं ! पुच्छा। गोयमा ! चउरिदिया कामी वि भोगी वि। [१७-३ प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों के सम्बंध में भी प्रश्न है (कि वे कामी हैं अथवा भोगी हैं)। [१७-३ उ.] गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं। [४] से केणटेणं जाव भोगी वि?
गोयमा ! चक्खिदियं पडुच्च कामी, घाणिंदिय-जिभिदिय-फासिंदियाई पडुच्च भोगी। से तेण?णं जाव भोगी वि।
[१७-४ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि चतुरिन्द्रिय जीव यावत् (कामी भी हैं और) भोगी भी हैं ?
[१७-४ उ.] गौतम ! (चतुरिन्द्रिय जीव) चक्षुरिन्द्रिय की अपेक्षा कामी हैं और घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं।
१८. अवसेसा जहा जीवा जाव वेमाणिया।
[१८] शेष वैमानिकों पर्यन्त सभी जीवों के विषय में औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए (वे कामी भी हैं, भोगी भी हैं)।
१९. एतेसिणं भंते ! जीवाणं कामभोगीणं नोकामीणं, नोभोगीणं, भोगीण य कतरे कतरेहितो जाव विसेसाहिया वा?
गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा कामभोगी, नोकामी-नोभोगी अणंतगुणा, भोगी अणंतगुणा।
[१९ प्र.] भगवन् ! काम-भोगी, नोकामी-नोभोगी और भोगी, इन जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाध्कि हैं ?
[१९ उ.] गौतम ! कामभोगी जीव सबसे थोड़े हैं, नोकामी-नोभोगी, जीव उनसे अनन्तगुणे हैं और