Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र समर्थ नहीं है ? भगवन् ! क्या आप इस अर्थ (तथ्य) को इसी तरह कहते हैं ?
[२० उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि वह (देवलोक में उत्पत्तियोग्य क्षीणशरीर भी) . उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम द्वारा किन्हीं विपुल एवं भोग्य भोगों को (यत्किंचित् रूप में, मन से भी) भोगने में समर्थ है। इसलिए वह भोगी भोगों का (मन से) परित्याग करता हुआ ही महानिर्जरा और महापर्यवसान (महान् शुभ अन्त) वाला होता है।
२१. आहोहिए णं भंते! मणुस्से जे भविए अन्नयरेसु देवलोएसु०,। एवं चेव जहा छउमत्थे जाव महापजवसाणे भवति।
[२१ प्र.] भगवन् ! ऐसा अधोऽवधिक (नियत क्षेत्र का अवधिज्ञानी) मनुष्य, जो किसी देवलोक में उत्पन्न होने योग्य है, क्या वह क्षीणभोगी उत्थान यावत् पुरुषकारपराक्रम द्वारा विपुल एवं भोग्य भोगों को भोगने में समर्थ है। ___ [२१ उ.] (हे गौतम ! ) ........ इसके विषय में उपर्युक्त छद्मस्थ के समान ही कथन जान लेना चाहिए; यावत् (भोगों का परित्याग करता हुआ ही वह महानिर्जरा और) महापर्यवसान वाला होता है।
२२. परमाहोहिए णं भंते ! मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झित्तए जाव अंतं करेत्तए, से नूणं भंते ! से खीणभोगी।
सेसं जहा छउमत्थस्स। । [२२ प्र.] भगवन् ! ऐसा परमावधिक (परम अवधिज्ञानी) मनुष्य जो उसी भवग्रहण से (जन्म में) सिद्ध होने वाला यावत् सर्व-दुःखों का अन्त करने वाला है, क्या वह क्षीणभोगी यावत् भोगने योग्य विपुल भोगों को भोगने में समर्थ है ?
[२२ उ.] (हे गौतम ! ) इसका उत्तर भी छद्मस्थ के लिए दिए हुए उत्तर के समान समझना चाहिए। २३. केवली णं भंते ! मणूसे जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं०। एवं चेव जहा परमाहोहि जाव महापज्जवसाणे भवति।
[२३ प्र.] भगवन् ! केवलज्ञानी मनुष्य भी, जो उसी भव में सिद्ध होने वाला है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करने वाला है, क्या वह विपुल और भोग्य भोगों को भोगने में समर्थ है ?
[२३ उ.] (हे गौतम ! ) इसका कथन भी परमावधिज्ञानी की तरह करना चाहिए यावत् वह महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
विवेचन क्षीणभोगी छद्मस्थ, अधोऽवधिक, परमावधिक, एवं केवली मनुष्यों में भोगित्व प्ररूपणा—प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. २० से २३ तक) में अन्तिम समय में क्षीणदेह छद्मस्थादि मनुष्य भोग भोगने में असमर्थ होने से भोगी कैसे कहे जा सकते हैं ? इस प्रश्न का सिद्धान्तसम्मत समाधान प्रतिपादित किया गया है।