Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
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सर्वाल्पाहारी होते है और क्यों ? यह सयुक्तिक निरूपण किया गया है।
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प्रावृट और वर्षा ऋतु में वनस्पतिकायिक सर्वमहाहारी क्यों ? - छह ऋतुओं में से इन दो ऋतुओं में वनस्पतिकायिक जीव सर्वाधिक आहारी होते हैं, इसका कारण यह है कि इन ऋतुओं में वर्षा अधिक बरसती है, इसलिए जलस्नेह की अधिकता के कारण वनस्पति को अधिक आहार मिलता है।
ग्रीष्म ऋतु में सर्वाल्पाहारी होते हुए भी वनस्पतियाँ पत्रित - पुष्पित क्यों ? • ग्रीष्मऋतु में जो वनस्पतियाँ पत्र, पुष्प, फलों से युक्त हरीभरी दिखाई देती हैं, इसका कारण उस समय उष्णयोनिक जीवों और . पुद्गलों के उत्पन्न होने, बढ़ने आदि का सिलसिला चालू हो जाना है।
वनस्पतिकायिक मूलजीवादि से स्पृष्ट मूलादि के आहार के सम्बंध में सयुक्तिक समाधान
३. से नूणं भंते ! मूला मूलजीवाफुडा, कंदा कंदजीवफुडा जाव बीया बीयजीवफुडा ?
हंता, गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा' जाव बीया बीयजीवफुडा ।
[३ प्र.] भगवन् ! क्या वनस्पतिकायिक के मूल, निश्चय ही मूल के जीवों से स्पृष्ट (व्याप्त) होते हैं, कन्द, कन्द के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, यावत् बीज, बीज, के जीवों से स्पृष्ट होते हैं ?
[ ३ उ.] हाँ गौतम ! मूल, मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, यावत् बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं। ४. जति णं भंते ! मूला मूलजीवफुडा जाव' बीया बीयजीवफुडा, कम्हा णं भंते । वणस्सतिकाइया आहारेंति ? कम्हा परिणामेंति ?
गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा पुढविजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेति, तम्हा परिणामेंति । कंदा कंदजीवफुडा मूलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति । एवं जाव बीया बीयजीवफुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणार्मेति ।
[४ प्र.] भगवन् ! यदि मूल, मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, यावत् बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, तो फिर भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार से (कैसे) आहार करते हैं और किस तरह से उसे परिणमाते हैं ?
[४ उ.] गौतम! मूल, मूल के जीवों में व्याप्त (स्पृष्ट) हैं और वे पृथ्वी के जीव के साथ सम्बद्ध (संयुक्त - जुड़े हुए) होते हैं, इस तरह से वनस्पतिकायिकजीव आहार करते हैं, और उसे परिणमाते हैं। इसी प्रकार कन्द, कन्द के जीवों के साथ स्पृष्ट (व्याप्त) होते हैं और मूल के जीवों से सम्बद्ध जुड़े हुए) रहते हैं; इसी प्रकार यावत् बीज, बीज के जीवों से व्याप्त (स्पृष्ट) होते हैं और वे फल के जीवों के साथ सम्बद्ध रहते हैं;
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ३००
२. 'मूलजीवफुडा' का अर्थ -
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३.
मूल के जीवों से स्पृष्ट- व्याप्त हैं।
'जाव' शब्द कन्द से लेकर बीज तक के पदों का सूचक है। यथा— 'खंधा, खंधजीवफुडा, तया, साला, पवाला, पत्ता, पुप्फा, फला, बीया ।'