Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सप्तम शतक : उद्देशक- ६
२६. एवं जाव वेमाणियाणं ।
[२६] इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए।
२७. अत्थि णं भंते ! जीवाणं असातावेदणिज्जा कम्मा कज्जंति ?
हंता, अत्थि ।
[ २७ प्र.] भगवन् ! क्या जीवों को असातावेदनीय कर्म बंधते हैं ?
[ २७ उ.] हाँ, गौतम ! बंधते हैं।
२८. कहं णं भंते ! जीवाणं अस्सायावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति ?
१५७
गोयमा ! परदुक्खणयाए परसोयणयाए परजूरणयाए परतिप्पणयाए पर पिट्टणयाए परपरितावणयाए, बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं दुक्खणताए सोयणयाए जाव परितावणयाए, एवं खलु गोयमा ! जीवाणं असातावेदणिज्जा कम्मा कज्जति ।
[ २८ प्र.] भगवन् ! जीवों को असातावेदनीय कर्म कैसे बंधते हैं ?
[ २८ उ.] गौतम ! दूसरों को दुःख देने से, दूसरे जीवों को शोक उत्पन्न करने से, जीवों को विषाद या चिन्ता उत्पन्न करने से, दूसरों को रुलाने या विलाप कराने से, दूसरों को पीटने से और जीवों को परिताप देने से तथा बहुत-से प्राण, भूत, जीव एवं सत्त्वों को दुःख पहुँचाने से, शोक उत्पन्न करने से यावत् उनको परिताप देने से (जीव असातावेदनीय कर्मबंध करते हैं।) हे गौतम इस प्रकार से जीवों को असातावेदनीय कर्म बंधते हैं।
२९. एवं नेरतियाण वि ।
[२९] इसी प्रकार नैरयिक जीवों के ( असातावेदनीय कर्मबंध के) के विषय में समझना चाहिए । ३०. एवं जाव वेमाणियाणं ।
[३०] इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त (असातावेदनीयबन्धविषयक) कथन करना चाहिए।
विवेचन - चौबीस दण्डकवर्ती जीवों के साता-असातावेदनीय कर्मबंध और उनके कारणप्रस्तुत आठ सूत्रों (२३ से ३० तक) में समस्त जीवों के सातावेदनीय एवं असातावेदनीय कर्मबंध तथा इनके कारणों का निरूपण किया गया है।
I
कठिन शब्दों के अर्थ - असोयणयाए – शोक उत्पन्न न करने से। अजूरणयाए – जिससे शरीर छीजे, ऐसा विषाद या शोक पैदा न करने से। अतिप्पणयाए— आंसू बहें, इस प्रकार का विलाप या रूदन न कराने से । अपिट्टणयाए – मारपीट न करने से ।'
१. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३०५