Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में वेदना और निर्जरा के तथा इन दोनों के समय के पृथक्त्व का निरूपण
१०.[१] से नूणं भंते ! जा वेदणा सा निजरा ? जा निजर सा वेदणा? गोयमा ! णो इणढे समठे।
[१०-१ प्र.] भगवन् ! क्या वास्तव में जो वेदना है, वह निर्जरा कही जा सकती है ? और जो निर्जरा है, वह वेदना कही जा सकती है? _[१०-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
[२] से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ ‘जा वेयणा न सा निज्जरा, जा निजरा न सा वेयणा' ? गोयमा ! कम्मं वेदणा, णोकम्मं निजरा। से तेणद्वेणं गोयमा ! जाव न सा वेदणा।
[१०-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं कही जा सकती और जो निर्जरा है, वह वेदना नहीं कहीं जा सकती।
[१०-२ उ.] गौतम ! वेदना कर्म और निर्जरा नोकर्म है। इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि यावत् जो निर्जरा है, वह वेदना नहीं कही जा सकती।
११.[१] नेरतियाणं भंते ! जा वेदणा सा निजरा? जा निज्जरा सा वेदणा? गोयमा ! णो इणढे समढे।
[११-१ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिकों की जो वेदना है, उसे निर्जरा कहा जा सकता है, और जो निर्जरा है, उसे वेदना कहा जा सकता है ?
[११-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। । [२] से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चति नेरइयाणं जा वेदणा न सा निजरा, जा निजरा न सा वेयणा?
गोयमा ! नेरइयाणं कम्मं वेदणा, णोकम्मं निजरा।से तेणठेणं गोयमा ! जाव न सा वेयणा।
[११-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नैरयिकों की जो वेदना है, उसे निर्जरा नहीं कहा जा सकता और जो निर्जरा है, उसे वेदना नहीं कहा जा सकता?
[११-२ उ.] गौतम ! नैरयिकों की जो वेदना है, वह कर्म है और जो निर्जरा है, वह नोकर्म है। इस कारण से हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि यावत् जो निर्जरा है, उसे वेदना नहीं कहा जा सकता।
१२. एवं जाव वेमाणियाणं। [१२] इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त (चौबीस दण्डकों में) कहना चाहिए। १३.[१] से नूणं भंते ! जं वेदेंसु तं निजरिंसु ? जं निजरिंसुतं वेदेंसु?