Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [५ उ.] गौतम ! वह (नरक में उत्पन्न होने योग्य जीव) इस भव में रहता हुआ नारकायुष्य का वेदन नहीं करता, किन्तु वहाँ उत्पन्न होता हुआ वह नारकायुष्य का वेदन करता है और उत्पन्न होने के पश्चात् भी नारकायुष्य का वेदन करता है।
६. एवं जाव वेमाणिएसु। [६] इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त चौबीस दण्डकों में (आयुष्यवेदन का) कथन करना चाहिए।
विवेचन–चौबीस दण्डकवर्ती जीवों के आयुष्यबंध और आयुष्यवेदन के सम्बंध में प्ररूपणानैरयिक से लेकर वैमानिक तक के जीवों में से जो जीव जिस गति में उत्पन्न होने वाला है, वह यहाँ रहा हुआ ही उस भव का आयुष्यवेदन कर लेता है, या वहाँ उत्पन्न होता हुआ करता है, अथवा वहाँ उत्पन्न होने के बाद आयुष्यबंध या आयुष्यवेदन करता है ? इस विषय में सैद्धान्तिक समाधान प्रस्तुत किया गया है। चौबीस दण्डकवर्ती जीवों के महावेदना-अल्पवेदना के सम्बंध में प्ररूपणा
७. जीवे णं भंते ! जे भविए नेरतिएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! किं इहगते महावेदणे ? उववज्जमाणे महावेदणे ? उववन्ने महावेदणे?
गोयमा ! इहगते सिय महावेयणे, सिय अप्पवेदणे; उववज्जिमाणे सिय महावेदणे, सिय अप्पवेदणे; अहे णं उववन्ने भवति ततो पच्छा एगंतदुक्खं वेदणं वेदेति, आहच्च सातं।
[७ प्र.] भगवन् ! जो जीव नारकों में उत्पन्न होने वाला है, भगवान् ! क्या वह यहाँ (इस भव में) रहता हुआ ही महावेदना वाला हो जाता है, या नरक में उत्पन्न होता हुआ महावेदना वाला होता है, अथवा नरक में उत्पन्न होने के पश्चात् महावेदना वाला होता है।
[७ उ.] गौतम ! वह (नरक में उत्पन्न होने वाला जीव) इस भव में रहा हुआ कदाचित् महावेदना वाला होता है, कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है। नरक में उत्पन्न होता हुआ भी कदाचित् महावेदना वाला
और कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है; किन्तु जब नरक में उत्पन्न हो जाता है, तब वह एकान्तदुःखरूप वेदना वेदता है, कदाचित् सुख (साता) रूप (वेदना वेदता है।)
५.[१] जीवे णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववजित्तए पुच्छा।
गोयमा ! इहगते सिय महावेदणे, सिय अप्पवेदणे; उववजमाणे सिय महावेदणे, सिय अप्पवेदणे; अहे णं उववन्ने भवति ततो पच्छा एगंतसातं वेदणं वेदेति, आहच्च असातं।
[८-१ प्र.] भगवन् ! जो जीव असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाला है, (उसके सम्बंध में भी) यही प्रश्न
है।
__ [८-१ उ.] गौतम ! (जो जीव असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाला है,) वह यहाँ (इस भव में) रहा हुआ कदाचित् महावेदना वाला और कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है; वहाँ उत्पन्न होता हुआ भी वह