Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र समय तक वह संज्ञा रहती है। निर्जरा होने पर वे पुद्गल 'कर्म' नहीं रहते, अकर्म हो जाते हैं। चौबीस दण्डकवर्ती जीवों की शाश्वतता-अशाश्वतता का निरूपण
२३.[१] नेरतिया भंते ! किं सासया, असासया ? [२३-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? [२३-१ उ.] गौतम ! नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं। [२] से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'नेरतिया सिय सासया, सिय असासया ?'
गोयमा ! अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए सासया, वोच्छित्तिणयट्ठयाए, असासया। से तेणद्वेणं जाव सिय असासया।
_[२३-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि 'नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं ?'
[२३-२ उ.] गौतम ! अव्युच्छित्ति (द्रव्यार्थिक) नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव शाश्वत हैं और व्युच्छित्ति (पर्यायार्थिक) नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव अशाश्वत हैं। इस कारण से हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं।
२४. एवं जाव वेमाणियाणं जाव सिय असासया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥सत्तम सए : तइयो उद्देसओ समत्तो॥ [२४] इसी प्रकार वैमानिकों-पर्यन्त कहना चाहिए कि वे कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं। यावत् इसी कारण मैं कहता हैं कि वैमानिक देव कथंचित् शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत हैं।
भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, इस प्रकार कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं।
विवेचन–चौबीस दण्डकवर्ती जीवों की शाश्वतता-अशाश्वतता का निरूपण—प्रस्तुत दो सूत्रों (२३ और २४) में चौबीस दण्डकवर्ती जीवों की शाश्वतता और अशाश्वतता का सापेक्षिक कथन किया गया है।
अव्युच्छित्तिनयार्थता व्युच्छित्तिनयार्थता का अर्थ—अव्युच्छित्ति (ध्रुवता) प्रधान नय अव्युच्छित्तिनय है, उसका अर्थ है—द्रव्य, अर्थात्—द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा और व्युच्छिति प्रधान जो नय है, उसका अर्थ 'है—पर्याय, अर्थात्—पर्यायर्थिकनय की अपेक्षा। द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा सभी पदार्थ शाश्वत हैं और पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा सभी पदार्थ अशाश्वत हैं।
॥सप्तम शतक : तृतीय उद्देशक सामप्त ॥
१. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३०२