Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१३] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के सम्बंध में नैरयिक जीवों की तरह कथन करना चाहिए।- ये सब अप्रत्याख्यानी हैं।
विवेचन-जीव और चौबीस दण्डकों में मूलगुण-उत्तरगुणप्रत्याख्यानी-अप्रत्याख्यानी वक्तव्यता—प्रस्तुत ५ सूत्रों (९ से १३ तक) में समुच्चय जीवों तथा नैरयिकों से लेकर वैमानिक तक के जीवों में मूलगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी के अस्तित्व की पृच्छा करके उसका समाधान किया गया है।
निष्कर्ष नैरयिकों, पंचस्थावरों, तीन विकलेन्द्रिय जीवों तथा भवन वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिकों में मूलगुणप्रत्याख्यानी या उत्तरगुणप्रत्याख्यानी नहीं होते, वे सर्वथा अप्रत्याख्यानी होते हैं। तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों में तीन ही विकल्प पाए जाते हैं। किन्तु तिर्यञ्चों में मात्र देशप्रत्याख्यानी ही हो सकते हैं। मूलोत्तरगुणप्रत्याख्यानी-अप्रत्याख्यानी जीव, पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों में अल्पबहुत्व
१४. एतेसिणं भंते ! जीवाणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं जाव अपच्च्वखाणीण य कतरे कतरेहितो जाव विसेसाहिया वा?
गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी असंखेजागुणा, अपच्चक्खाणी अणंतगुणा।
[१४ प्र.] भगवन् ! मूलगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी, इन जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
[१४ उ.] गौतम ! सबसे थोड़े जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, (उनसे) उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्येय गुणा हैं और (उनसे) अप्रत्याख्यानी अनन्तगुणा हैं।
१५. एतेसि णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं० पुच्छा।
गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी असंखेजगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेजगुणा।
[१५ प्र.] भगवन् ! इन मूलगुणप्रत्याख्यानी आदि (पूर्वोक्त) जीवों में पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ?
_[१५ उ.] गौतम ! मूलगुणप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च जीव सबसे थोड़े हैं, उनसे उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्यगुणा हैं, और उनसे अप्रत्याख्यानी असंख्यगुणा हैं।
१६. एतेसि णं भंते ! मणुस्साणं मूलगुणपच्चक्खणीणं० पुच्छा।
गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी संखेजगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेजगुणा।