Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सप्तम शतक : उद्देशक-१
१२१ भोयणस्स के अटे पण्णत्ते ?
गोयमा ! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासुएसणिजं असण-पाण-खाइम-साइमं झुणग्गते सूरिय पडिग्गाहित्ता उग्गते सूरिय आहारं आहारेति एस णं गोतमा ! खेत्तातिक्कंते पाण-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा २ जाव० साइमं पढमाए पोरिसीए पडिगाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवायणावेत्ता आहारं आहारेति एसणं गोयमा !कालातिक्कंते पाण-भोयणे।जेणं निग्गंथे वा २ जाव० सातिमंपडिगाहित्ता परं अद्धजोयणमेराए वीतिक्कमावेत्ता आहारमाहारेति एवं णं गोयमा ! मग्गातिक्कंते पाण-भोयणे। जे णं निग्गथे निग्गंथी वा फासुएसणिजं जाव सातिमं पडिगाहित्ता परं बत्तीसाए कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ताणं कवलाणं आहारमाहारेति एस णं गोतमा ! पमाणतिक्कंते पाण-भोयणे। अट्ठकुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे अप्पहारे, दुवालसकुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे अवड्डोमोयरिया, सोलसकुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे दुभागप्पत्ते, चउव्वीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते जाव आहारमाहारेमाणे ओमोदरिया, बत्तीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते केवले आहारमाहारेमाणे पमाणपत्ते, एत्तो एक्केण वि गासेण ऊणगं आहारमाहारेमाणे समणे निग्गंथे नाम पकामरसभोई इति वत्तव्वं सिया। एस णं गोयमा ! खेत्तातिक्कंतस्स कालातिक्कंतस्स मग्गातिक्कंतस्स पमाणातिक्कंतस्स पाण-भोयणस्स अट्टे पण्णत्ते।
। [१९ प्र.] भगवन् ! क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त पान-भोजन का क्या अर्थ है ?
[१९ उ.] गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी, प्रासुक और एषणीय अशन-पान-खादिम-स्वादिमरूप चतुर्विध आहार को सूर्योदय से पूर्व ग्रहण करके सूर्योदय के पश्चात् उस आहार को करते हैं, तो हे गौतम ! यह क्षेत्रातिक्रान्त पान-भोजन कहलाता है। जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी यावत् चतुर्विध आहार को प्रथम प्रहार (पौरुषी) में ग्रहण करके अन्तिम प्रहर (पौरुषी) तक रख कर सेवन करते हैं तो हे गौतम ! यह कालातिक्रान्त पानभोजन कहलाता है। जो निम्रन्थ या निर्ग्रन्थी यावत् चतुर्विध आहार को ग्रहण करके आधे योजन (दो कोस) की मर्यादा (सीमा) का उल्लंघन करके खाते हैं, तो हे गौतम ! यह मार्गातिक्रान्त पान-भोजन कहलाता है। जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी प्रासुक एवं एषणीय यावत् आहार को ग्रहण करके कुक्कुटीअण्डक (मुर्गी के अंडे के) प्रमाण बत्तीस कवल (कौर या ग्रास) की मात्रा से अधिक (उपरान्त) आहार करता है, तो हे गौतम ! यह प्रमाणातिक्रान्त पान-भोजन कहलाता है।
___ कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण आठ कवल की मात्रा में आहार करने वाला साधु 'अल्पाहारी' कहलाता है। कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण बारह कवल की मात्रा में आहार करने वाला साधु अपार्द्ध अवमोदरिका (किंचित् न्यून अर्ध ऊनोदरी) वाला होता है। कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण सोलह कवल की मात्रा में आहार करने वाला साधु द्विभागप्राप्त आहार वाला (अर्धाहारी) कहलाता है। कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण चौबीस कवल की मात्रा में आहार करने वाला साधु ऊनोदरिका वाला होता है। कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण बत्तीस कवल की मात्रा में आहार करने वाला साधु प्रमाणप्राप्त (प्रमाणोपेत) आहारी कहलाता है। इस (बत्तीस कवल) में एक भी ग्रास कम आहार करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ 'प्रकामरसभोजी' (अत्यधिक मधुरादिरसभोक्ता) नहीं है, यह कहा जा सकता है। हे गौतम ! यह क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त पान-भोजन का अर्थ