Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कोहकिलामं करेमाणे आहारमाहारेति एस णं गोयमा ! सधूमे पाणभोयणे।जेणं निग्गंथे वा २ जाव पडिग्गाहित्ता गुणुप्पायणहेतु अन्नदव्वेणं सद्धि संजोएत्ता आहारमाहारेति एवंणं गोयमा ! संजोयणादोसदुढे पाण-भोयणे। एसणं गोतमा ! सइंगालस्स सधूमस्स संजोयणादोसदुट्ठस्स पाण-भोयणस्स अढे पण्णत्ते।
। [१७ प्र.] भगवन् ! अंगारदोष, धूमदोष और संयोजनादोष से दूषित पान भोजन (आहार-पानी) का क्या अर्थ कहा गया है ?
_ [१७ उ.] गौतम ! जो निर्ग्रन्थ (साधु) अथवा निर्ग्रन्थी (साध्वी) प्रासुक और एषणीय अशन-पानखादिम-स्वादिमरूप आहार ग्रहण करके उसमें मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त (अध्युपपन्न एकाग्रचित्त) होकर आहार करते हैं, हे गौतम ! यह अंगारदोष से दूषित आहार-पानी कहलाता है। जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी प्रासुक और एषणीय अशन-पान-खादिम-स्वादिम रूप आहार ग्रहण करके, उसके प्रति अत्यन्त अप्रीतिपूर्वक, क्रोध से खिन्नता करते हुए आहार करते हैं, तो हे गौतम ! यह धूमदोष से दूषित आहार-पानी कहलाता है। जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी प्रासुक यावत् आहार ग्रहण करके गुण (स्वाद उत्पन्न) करने हेतु दूसरे पदार्थों के साथ संयोग करके आहार-पानी करते हैं, हे गौतम ! वह आहार-पानी संयोजना दोष से दूषित कहलाता है । हे गौतम ! यह अंगार दोष, धूमदोष और संयोजना दोष से दूषित पान-भोजन का अर्थ कहा गया
१८. अह भंते ! वीतिंगालस्स वीयधूमस्स संजोयणादोसविप्पमुक्कस्स पाण-भोयणस्स के अढे पण्णत्ते ? ___ गोयमा ! जे णं णिग्गंथे वा २ जाव पडिगाहेता अमुच्छिते जाव आहारेति एवं णं गोयमा ! वीतिंगाले पाण-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा २ जाव पडिगाहेत्ता णो महत्ताअप्पत्तियं जाव आहारेति, एस णं गोयमा ! वीतधूमे पाण-भोयणे।जे णं निग्गंथे वा २ जाव पडिगाहेत्ता जहा लद्धं तहा आहार आहारेति एवं णं गोतमा ! संजोयणादोषविप्पमुक्के पाण-भोयणे। एस णं गोतमा ! वीतिंगालस्स वीतधूमस्स संजोयणादोसविप्पमुक्कस्स पाण-भोयणस्स अट्टे पण्णत्ते।
[१५ प्र.] भगवन् अंगार, धूम और संयोजना, इन तीन दोषों से मुक्त (रहित) पानी-भोजन का क्या अर्थ कहा गया है ?
[१५ उ.] गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी प्रासुक और एषणीय अशन-पान-खादिम-स्वादिमरूप चतुर्विध आहार को ग्रहण करके मूर्छारहित यावत् आसक्तिरहित होकर आहार करते हैं, हे गौतम ! यह अंगारदोषरहित पान-भोजन कहलाता है। जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी यावत् अशनादि को ग्रहण करके अत्यन्त अप्रीतिपूर्वक यावत् आहार नहीं करता है, हे गौतम ! यह धम-दोषरहित पान-भोजन है। जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी यावत् अशनादि को ग्रहण करके, जैसा मिला है, वैसा ही आहार कर लेते हैं, (स्वादिष्ट बनाने के लिए उसमें दूसरे पदार्थों का संयोग नहीं करते,) तो हे गौतम ! यह संयोजनादोषविमुक्त पान-भोजन का अर्थ कहा गया है।
१९. अह भंते ! खेत्तातिक्कंतस्स कालातिक्कंतस्स मग्गातिक्कंतस्स पमाणातिक्कंतस्स पाण