Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छठा शतक : उद्देशक-५ इणामेव'त्ति कटु केवलकप्पं जंबुद्वीवे दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहि तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छिज्जा।से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव देवगईए वीईवयमाणे वीईवयमाणे जाव एकाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं छम्मासे वीतीवएज्जा, अत्थेगइयं तमुक्कायं वीतीवएज्जा, अत्यंगइयं तमुक्कायं नो वीतीवएजा। एमहालए णं गोयमा ! तमुक्काए पन्नत्ते।
[५ प्र.] भगवन् ! तमस्काय कितना बड़ा कहा गया है ?
[५ उ.] गौतम ! समस्त द्वीप-समुद्रों के सर्वाभ्यन्तर अर्थात्-बीचोंबीच यह जम्बूद्वीप है, यावत् यह एक लाख योजन का लम्बा-चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। कोई महाऋद्धि यावत् महानुभाव वाला देव-'यह चला, यह चला;' यों करके तीन चुटकी बजाए, उतने समय में सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा करके शीघ्र वापस आ जाए, इस प्रकार की उत्कृष्ट और त्वरायुक्त यावत् देव की गति से चलता हुआ देव यावत् एक दिन, दो दिन, तीन दिन चले, यावत् उत्कृष्ट छह महीने तक चले तब जाकर कुछ तमस्काय को उल्लंघन कर पाता है, और कुछ तमस्काय को उल्लंघन नहीं कर पाता। हे गौतम ! तमस्काय इतना बड़ा (महालय) कहा गया है।
६. अत्थि णं भंते ! तमुक्काए गेहा ति वा, गेहावणा ति वा ? णो इणढे समढे। [६ प्र.] भगवन् ! तमस्काय में गृह (घर) है, अथवा गृहापण (दुकानें) हैं ? [६ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ७. अत्थि णं भंते ! तमुक्काए गामा ति वा जाव सन्निवेसा ति वा ? णो इणढे समढे। [७ प्र.] भगवन् ! तमस्काय में ग्राम हैं, यावत् अथवा सन्निवेश हैं ? [७ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं। ८.[१] अस्थि णं भंते ! तमुक्काए ओराला बलाहया संसेयंति, सम्मुच्छंति, वासं वासंति ? हंता, अत्थि। __ [८-१ प्र.] भगवन् ! क्या तमस्काय में उदार (विशाल) मेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मूर्छित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं ?
[८-१ उ.] हाँ, गौतम ! ऐसा है। [२] तं भंते ! किं देवो पकरेति, असुरो पकरेति ? नागो पकरेति ?
गोयमा ! देवो विपकरेति, असुरो वि पकरेति, णागो वि पकरेति। १. अच्छारानिवाएहिं—चुटकी बजाने जितने समय में।