Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सत्तमो उद्देसओ : 'साली'
सप्तम उद्देशक : 'शाली' कोठे आदि में रखे हुए शाली आदि विविध धान्यों की योनि-स्थिति-प्ररूपणा
१. अहणं भंते ! सालीणं वीहीणं गोधूमाणं जवाणं जवजवाणं एतेसिणं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं पिहित्ताणं मुद्दियाणं लंछियाणं केवतियं कालं जोणी संचिट्ठति ?
गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिणि संवच्छराइं, तेणं परं जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परंजोणिवोच्छेदे पन्नत्ते समणाउसो ! ।
। [१ प्र.] भगवन् ! शाली (कमल आदि जातिसम्पन्न चावल), व्रीहि (सामान्य चावल), गोधूम (गेहूँ), यव (जौ) तथा यवयव (विशिष्ट प्रकार का जौ), इत्यादि धान्य कोठे में सुरक्षित रखे हों, बांस के पल्ले (छबड़े) से रखे हों, मंच (मचान) पर रखे हों, माल में डालकर रखे हों, (बर्तन में डालकर) गोबर से उनके मुख उल्लिप्त (विशेष प्रकार से लीपे हुए) हों, लिप्त हों, ढंके हुए हों, (मिट्टी आदि से उन बर्तनों के मुख) मुद्रित (छंदित किये हुए) हों, (उनके मुंह बन्द करके) लांछित (सील लगाकर चिह्नित) किये हुए हों; (इस प्रकार सुरक्षित किये हुए हों) तो उन (धान्यों) की योनि (अंकुरोत्पत्ति में हेतुभूत शक्ति) कितने काल तक रहती है?
[१ उ.] हे गौतम ! उनकी योनि कम से कम अन्तर्मुहूर्त तक और अधिक से अधिक तीन वर्ष तक कायम रहती है। उसके पश्चात् उन (धान्यों) की योनि म्लान हो जाती है, प्रतिध्वंस को प्राप्त हो जाती है, फिर वह बीज अबीज हो जाता है। इसके पश्चात् हे श्रमणायुष्मन् ! उस योनि का विच्छेद हुआ कहा जाता है।
२.अह भंते ! कलाय-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-निप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सईण-पलिमंथगमादीणं एतेसि णं धन्नाणं०?
जहा सालीणं तहा एयाण वि, नवरं पंच संवच्छराइं। सेसं तं चेव।
[२ प्र.] भगवन् ! कलाय, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, बाल (बालोर), कुलथ, आलिसन्दक (एक प्रकार का चौला). तुअर (सतीण-अरहर), पलिमंथक (गोल चना या काला चना) इत्यादि (धान्य पूर्वोक्त रूप से कोठे आदि में रखे हुए हों तो इन) धान्यों की (योनि कितने काल तक कायम रहती है ?)
[२ उ.] गौतम ! जिस प्रकार शाली धान्य के लिए कहा, उसी प्रकार इन धान्यों के लिए भी कहना चाहिए। विशेषता इतनी ही है कि यहाँ उत्कृष्ट पांच वर्ष कहना चाहिए। शेष सारा वर्णन उसी तरह समझना चाहिए।