Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[६ प्र.] भगवन् ! क्या महर्द्धिक यावत् महानुभाग वाला देव बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना काले पुद्गलों को नीले पुद्गल के रूप में और नीले पुद्गल को काले पुद्गल के रूप में परिणत करने में समर्थ है ?
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[६ उ.] गौतम ! (बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना) यह अर्थ समर्थ नहीं है; किन्तु बाहरी पुद्गलों को ग्रहण करके देव वैसा करने में समर्थ है।
७. से णं भंते ! किं इहगए पोग्गले० तं चेव, नवरं परिणामेति त्ति भाणियव्वं ।
[७ प्र.] भगवन् ! वह देव इहगत, तत्रगत या अन्यत्रगत पुद्गलों (में से किन) को ग्रहण करके वैसा करने में समर्थ है ?
[७ उ.] गौतम ! वह इहगत और अन्यत्रगत पुद्गलों को ग्रहण करके वैसा नहीं कर सकता, किन्तु तत्र (देवलोक) गत पुद्गलों को ग्रहण करके वैसा परिणत करने में समर्थ है। [विशेष यह है कि यहाँ 'विकुर्वित करने में' के बदले 'परिणत करने में' कहना चाहिए।]
८. [ १ ] एवं कालगपोग्गलं लोहियपोग्गलत्ताए ।
[ २ ] एवं कालएणं जाव' सुक्किलं ।
[८-१] इसी प्रकार काले पुद्गल को लाल पुद्गल के रूप में (परिणत करने में समर्थ है।)
[८-२] इसी प्रकार काले पुद्गल के साथ शुक्ल पुद्गल तक समझना।
९. एवं णीलएणं जाव सुक्किलं ।
[९] इसी प्रकार नीले पुद्गलों के साथ शुक्ल पुद्गल तक जानना ।
१०. एवं लोहिएणं जाव सुक्किलं ।
[१०] इसी प्रकर लाल पुद्गल को शुक्ल तक (परिणत करने में समर्थ है।)
११. एवं हालिएणं जाव सुक्किलं ।
[११] इसी प्रकार पीले पुद्गल को शुक्ल तक (परिणत करने में समर्थ है; यों कहना चाहिए।) १२. एवं एताए परिवाडीए गंध-रस- फास० कक्खडफासपोग्गलं मउयफासपोग्गलत्ताए । एवं - लहु २, सीय-उसिण २, णिद्ध - लुक्ख २, वण्णाई सव्वत्थ परिणामेइ । आलावगा य दो दो पोग्गले अपरियादिइत्ता, परियादिइत्ता ।
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[१२] इसी प्रकार इस क्रम (परिपाटी) के अनुसार गन्ध, रस और स्पर्श के विषय में भी समझना चाहिए। यथा— ( यावत्) कर्कश स्पर्शवाले पुद्गल को मृदु (कोमल) स्पर्शवाले (पुद्गल में परिणत करने में
१. 'जाव' पद से यहाँ सर्वत्र आगे-आगे के सभी वर्ण जान लेने चाहिए।