Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [गाथा का अर्थ —] तमस्काय में और पांच देवलोकों तक में अग्निकाय और पृथ्वीकाय के सम्बंध में प्रश्न करना चाहिए। रत्नप्रभा आदि नरकपृथ्वियों में अग्निकाय के सम्बंध में प्रश्न करना चाहिए। इसी तरह पंचम कल्प-देवलोकों से ऊपर सब स्थानों में तथा कृष्णराजियों में अप्काय, तेजस्काय और वनस्पतिकाय के सम्बंध में प्रश्न करना चाहिए।
विवेचन–रत्नप्रभा पृथ्वियों तथा सर्व देवलोकों में गृह-ग्राम-मेघादि के अस्तित्व आदि की प्ररूपणा- प्रस्तुत २६ सूत्रों में रत्नप्रभादि सातों पृथ्वियों तथा सौधर्मादि सर्व देवलोकों के नीचे तथा परिपार्श्व में गृह, गृहापण, महामेघ, वर्षा, मेघगर्जन, बादर अग्निकाय, चन्द्रादि पांचों ज्योतिष्क, चन्द्र-सूर्याभा, बादर अप्काय, बादर पृथ्वीकाय, बादर वनस्पतिकाय आदि के अस्तित्व एवं वर्षादि के कर्तृत्व से सम्बन्धित विचारणा की गई है।
वायुकाय, अग्निकाय आदि का अस्तित्व कहाँ है, कहाँ नहीं ? – रत्नप्रभादि पृथ्वियों के नीचे बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय नहीं है, किन्तु वहाँ घनोदधि आदि होने से अप्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय है। सौधर्म, ईशान आदि देवलोकों में बादर पृथ्वीकाय नहीं है; क्योंकि वहाँ उसका स्वस्थान नहीं होने से उत्पत्ति नहीं है तथा सौधर्म, ईशान उदधिप्रतिष्ठित होने से वहाँ बादर अप्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय का सद्भाव है। इसी तरह सनत्कुमार और माहेन्द्र में तमस्काय होने से वहाँ बादर अप्काय और वनस्पतिकाय का होना सुसंगत है। तमस्काय में और पांचवें देवलोक तक बादर अग्निकाय और बादर पृथ्वीकाय का अस्तित्व नहीं है। शेष तीन का सदभाव है। बारहवें देवलोक तक इसी तरह जान लेना चाहिए। पांचवे देवलोक से ऊपर के स्थानों में तथा कृष्णराजियों में भी बादर अप्काय, तेजस्काय और वनस्पतिकाय का सद्भाव नहीं है, क्योंकि उनके नीचे वायुकाय का ही सद्भाव है।
महामेघ-संस्वेदन-वर्षणादि कहाँ, कौन करते हैं ? – दूसरी पृथ्वी की सीमा से आगे नागकुमार नहीं जाते, तथा तीसरी पृथ्वी की सीमा से आगे असुरकुमार नहीं जाते; इसलिए दूसरी नरकपृथ्वी के नीचे तक महामेघ-संस्वेदन-वर्षण-गर्जन आदि सब कार्य देव और असुरकुमार करते हैं, तथा चौथी पृथ्वी के नीचे-नीचे सब कार्य केवल देव ही करते हैं। सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे तक तो चमरेन्द्र की तरह असुरकुमार ही करते हैं, किन्तु नागकुमार नहीं जा सकते, इसलिए इन दो देवलोकों के नीचे देव और असुर कुमार ही करते हैं, इससे आगे सनत्कुमार से अच्युत देवलोक तक में केवल देव ही करते हैं, इससे आगे देव की जाने की शक्ति नहीं है और न ही वहाँ मेघ आदि का सद्भाव है। १. (क) भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्रांक २७९
(ख) भगवतीसूत्र (टीकानुवाद-टिप्पणयुक्त) खण्ड २, पृ. ३२९ (ग) तत्त्वार्थसूत्र अ. ३ सू. १ से ६ तक भाष्यसहित, पृ. ६४ से ७४ तक (घ) सूत्रकृतांग श्रु.-१, अ-५, निरयविभक्ति