Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छठा शतक : उद्देशक-७
७९ गहरे गोलाकार कुए में देवकुरु-उत्तरकुरु के यौगलिकों के मुण्डित मस्तक पर एक दिन के दो दिन के यावत् ७ दिन के उगे हुए करोड़ों बालागों से उस कूप को यों ठंस-ठंस कर भरा जाए कि वे बालाग्र न तो आग से जल सकें और न ही हवा से उड़ सकें। फिर उनमें से प्रत्येक को एक-एक समय में निकालते हुए जितने समय में वह कुआ सर्वथा खाली हो जाए, उस कालमान को 'व्यावहारिक उद्धारपल्योपम' कहते हैं । यह पल्योपम संख्यात समयपरिमित होता है। इसी तरह उक्त बालाग्र के असंख्यात अदृश्य खण्ड किए जाएँ, जो कि विशुद्ध नैत्र वाले छद्मस्थ पुरुष के दृष्टिगोचर होने वाले सूक्ष्म पुद्गलद्रव्य के असंख्यातवें भाग एवं सूक्ष्म पनक के शरीर से असंख्यातगुणा हों। उन सूक्ष्म बालाग्रखण्डों से वह कूप ढूंस-ठूस कर भरा जाए और उनमें से एकएक बालाग्रखण्ड प्रतिसमय निकाला जाये। यों निकालते-निकालते जितने काल में वह कुआ खाली हो जाए, उसे 'सूक्ष्म उद्धारपल्योपम' कहते हैं। इसमें संख्यातवर्षकोटिपरिमित काल होता है।
अद्धापल्योपम–उपर्युक्त रीति से भरे हुए उपर्युक्त परिमाण वाले कूप में से एक-एक बालाग्र सौ-सौ वर्ष में निकाला जाए। इस प्रकार निकालते-निकालते जितने काल में वह कुआ सर्वथा खाली हो जाए, उसे 'व्यवहार अद्धापल्योपम' कहते हैं । यह अनेक संख्यातवर्ष कोटिप्रमाण होता है। यदि यही कुआ उपर्युक्त सूक्ष्म-बालाग्रखण्डों से भरा हो उनमें से प्रत्येक बालाग्रखण्ड को सौ-सौ वर्ष में निकालते-निकालते जितने काल में वह कुआ खाली हो जाए, उसे 'सूक्ष्म अद्धापल्योपम' कहते हैं। इसमें असंख्यातवर्षकोटिप्रमाण काल होता है।
क्षेत्रपल्योपम–उपर्युक्त परिमाण का कूप उपर्युक्त रीति से बालारों से भरा हो, उन बालानों को जितने आकाशप्रदेश स्पर्श किये हुए हैं, उन स्पर्श किये हुए आकाशप्रदेशों में से प्रत्येक को (बौद्धिक कल्पना से) प्रति समय निकाला जाए। इस प्रकार उन छुए हुए आकाशप्रदेशों को निकालने में जितना समय लगे वह 'व्यवहार क्षेत्रपल्योपम' है। इसमें असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीपरिमाण काल होता है। यदि यही कुआ बालाग्र के सूक्ष्मखण्डों से ढूंस-ठूस कर भरा जाए, तथा उन बालाग्रखण्डों से छुए हुए एवं नहीं छुए हुए सभी आकाशप्रदेशों में से प्रत्येक आकाशप्रदेश को प्रतिसमय निकालते हुए सभी को निकालने में जितना काल लगे, वह 'सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम' है। इसमें भी असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीपरिमाणकाल होता है, किन्तु इसका काल व्यवहार क्षेत्रपल्योपम से असंख्यात गुणा है।
सागरोपम के प्रकार - पल्योपम की तरह सागरोपम के तीन भेद हैं और प्रत्येक भेद के दो-दो प्रकार
उद्धारसागरोपम-के दो भेद हैं—व्यवहार और सूक्ष्म । दस कोटाकोटि व्यवहार उद्धार-पल्योपम का एक 'व्यवहार उद्धारसागरोपम' होता है और दस कोड़ाकोड़ी सूक्ष्म उद्धारपल्योपम का एक ‘सूक्ष्म उद्धारसागरोपम' होता है। ढाई सूक्ष्म उद्धारसागरोपम या २५ कोड़ाकोड़ी सूक्ष्म उद्धारपल्योपम में जितने समय होते हैं, उतने ही लोक में द्वीप और समुद्र हैं।
अद्धासागरोपम के भी दो भेद हैं - व्यवहार और सूक्ष्म । दस कोड़ाकोड़ी व्यवहार अद्धापल्योपम का