Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छठा शतक : उद्देशक - ५
[२२ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में ग्राम आदि हैं ?
[२२ उ.] (गौतम ! ) यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात् कृष्णराजियों में ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश
नहीं हैं ।)
२३. [ १ ] अत्थि णं भंते ! कण्ह० ओराला बलाहया सम्मुच्छंति ३ ?
हंता, अत्थि ।
[१३-१ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में उदार (विशाल) महामेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मूर्छित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं ?
[२३-१ उ.] हाँ, गौतम ! कृष्णराजियों में ऐसा होता है ।
[२] तं भंते ! किं देवो पकरेति ३ ?
गोयमा ! देवो पकरेति, नो असुरो, नो नागो य ।
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[२३-२ प्र.] भगवन् ! क्या इन सबको देव करता है, असुर (कुमार) करता है अथवा नाग (कुमार) करता है ?
[२३-२ उ.] गौतम ! (वहाँ यह सब ) देव ही करता है, किन्तु न असुर (कुमार) करता है और न नाग (कुमार) करता है।
भंते! कण्हराईसु बादरे थणियसद्दे ?
२४. अस्थि
जहा ओराला (सु. २३ ) तहा ।
[२४ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में बादर स्तनितशब्द है ?
[२४ उ.] गौतम ! जिस प्रकार से उदार मेघों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार इनका भी कथन करना चाहिए। (अर्थात् कृष्णराजियों में बादर स्तनितशब्द है और उसे देव करता है, किन्तु असुरकुमार या नागकुमार नहीं करता है।)
२५. अत्थि णं भंते ! कण्हराईसु बादरे आउकाए बादरे अगणिकाए बायरे वणप्फतिकाए ? इट्ठे समट्ठे, णऽण्णत्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं ।
[ २५ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में बादर अप्काय, बादर अग्निकाय और बादर वनस्पतिकाय है ? [ २५ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। यह निषेध विग्रहगतिसमापन्न जीवों के सिवाय दूसरे जीवों के लिए है।
२६. अत्थि णं भंते ! ० चंदिमसूरिय० ४ प० ?
णो इण ।
[२६ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में चन्द्रमा, सूर्य ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं ?
[ २६ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात् — ये वहाँ नहीं हैं ।)