Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छट्ठो उद्देसओ : 'भविए'
छठा उद्देशक : भव्य
चौबीस दण्डकों के आवास, विमान आदि की संख्या का निरूपण
१. [१] कति णं भंते! पुढवीओ पण्णत्तओ ?
गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रयणप्पभा जाव' तमतमा ?
[१-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वियां कितनी कही गई हैं ?
[१-१ उ.] गौतम ! पृथ्वियां सात कहीं गई हैं। यथा – रत्नप्रभा यावत् [ शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा] तमस्तमः प्रभा।
[२] रयणप्पभादीणं आवासा भाणियव्वा जाव' अहेसत्तमाए । एवं जे जत्तिया आवासा ते भाणियव्वा ।
[१२] रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर अधः सप्तमी (तमस्तम: प्रभा) पृथ्वी तक, जिस पृथ्वी के जितने आवास हों, उतने कहने चाहिए ।
२. जाव' कति णं भंते ! अणुत्तरविमाणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंच अणुत्तरविमाणा पण्णत्ता, तं जहा - विजय जाव सव्वट्ठसिद्धे ।
[२ प्र.] भगवन् ! यावत् (भवनवासी से लेकर अनुत्तरविमान तक) अनुत्तरविमान कितने कहे गये हैं ? [ २ उ.] गौतम ! पांच अनुत्तरविमान कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – विजय, यावत् (वैजयन्त, जयन्त, अपराजित) सर्वार्थसिद्ध विमान ।
विवेचन चौबीस दण्डकों के आवास, विमान आदि की संख्या का निरूपण - प्रस्तुत सूत्रद्वय में से प्रथम सूत्र में नरकपृथ्वियों की संख्या तथा उस-उस पृथ्वी के आवासों की संख्या का अतिदेशपूर्वक निरूपण किया गया है। द्वितीय सूत्र में अध्याहाररूप में भवनवासी से लेकर नौ ग्रैवेयक तक के आवासों व विमानों की संख्या का तथा प्रकटरूप में अनुत्तरविमानों की संख्या का निरूपण किया गया है।
१. यहाँ 'जाव' पद सक्करण्यभा इत्यादि शेष पृथ्वियों तक का सूचक है।
२. यहाँ भी 'जाव' पद रत्नप्रभा से लेकर सप्तम पृथ्वी ( तमस्तम: प्रभा) तक का सूचक है।
तक का उल्लेख समझना चाहिए।
३. यहाँ ' जाव' पद से 'भवनवासी' से अनुत्तरविमान से ४. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ — टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. २५६