Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[४१-१ प्र.] भगवन् !, लोकान्तिकविमान किसके आधार पर प्रतिष्ठित (रहे हुए) हैं ? [४१-१ उ.] गौतम ! लोकान्तिकविमान वायुप्रतिष्ठित (वायु के आधार पर रहे हुए) हैं।
[ २ ] एवं नेयव्वं—' विमाणाणं पतिट्ठाणं बाहल्लुच्चत्तमेव संठाणं ।' बंभलोयवत्तव्वया नेयव्वा जाव हंता गोयमा ! असतिं अदुवा अणंतखुत्तो, नो चेव णं देवत्ताए ।
[४१-२] इसी प्रकार - जिस तरह विमानों का प्रतिष्ठान, विमानों का बाहल्य, विमानों की ऊंचाई और विमानों के संस्थान आदि का वर्णन जीवाजीवाभिगमसूत्र के देव उद्देशक में ब्रह्मलोक की वक्तव्यता में कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना चाहिए; यावत् हाँ, गौतम ! सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व यहाँ अनेक बार और अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं, किन्तु लोकान्तिकविमानों में देवरूप में उत्पन्न नहीं हुए ।
४२. लोगंतिगविमाणेसु लोगंतियदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता ।
[४२ प्र.] भगवन् ! लोकान्तिकविमानों में लोकान्तिकदेवों की कितने काल की स्थिति कही गई हैं ? [४२ उ.] गौतम ! (लोकान्तिकविमानों में लोकान्तिकदेवों की) आठ सागरोपम की स्थिति कही गई
है ।
४३. लोगंतिगविमाणेहिं णं भंते ! केवतियं अबाहाए लोगंते पण्णत्ते ? गोमा ! असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं अबाहाए लोगंते पण्णत्ते । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ।
॥ छ्ट्ट सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो ॥
[४३ प्र.] भंगवन् ! लोकान्तिकविमानों से लोकान्त कितना दूर है ?
[४३ उ.] गौतम ! लोकान्तिक विमानों से असंख्येय हजार योजन दूर लोकान्त कहा गया है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है;' इस प्रकार कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरण करने लगे।
विवेचन — लोकान्तिक देवों से सम्बन्धित विमान, देवस्वामी, परिवार, संस्थान, स्थिति, दूरी 'आदि का वर्णन – प्रस्तुत बारह सूत्रों (सू. ३२ से ४३ तक) में लोकान्तिकदेवों से सम्बन्धित विमानादि का वर्णन किया गया है।
विमानों का अवस्थान—पूर्व विवेचन में लोकान्तिकदेवों के विमानों के अवस्थान का रेखाचित्र दिया
गया है।
लोकान्तिकदेवों का स्वरूप-ये देव ब्रह्मलोक नामक पंचम देवलोक के पास रहते हैं, इसलिए इन्हें