Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र यथा—(१) अर्चि, (२) अर्चिमाली, (३) वैरोचन, (४) प्रभंकर, (५) चन्द्राभ, (६) सूर्याभ, (७) शुक्राभ और (८) सुप्रतिष्ठाभ । इन सबके मध्य में रिष्टाभ विमान है।
३३. कहि णं भंते ! अच्ची विमाणे प०? गोयमा ! उत्तरपुरथिमेणं। [३३ प्र.] भगवन् ! अर्चि विमान कहाँ है ? [३३ उ.] गौतम ! अर्चि विमान उत्तर और पूर्व के बीच में है। ३४. कहि णं भंते ! अच्चिमाली विमाणे प०? गोयमा ! पुरत्थिमेणं। [३४ प्र.] भगवन् ! अर्चिमाली विमान कहाँ है ? [३४ उ.] गौतम ! अर्चिमाली विमान पूर्व में है। ३५. एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव' कहि णं भंते ! रिटे विमाणे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुमज्झदेसभागे।
[३५ प्र.] इसी क्रम (परिपाटी) से सभी विमानों के विषय में जानना चाहिए यावत्-हे भगवन् ! रिष्ट विमान कहाँ बताया गया है ?
[३५ उ.] गौतम ! रिष्ट विमान बहुमध्यभाग, (सबके मध्य) में बताया गया है। ३६. एतेसु णं अट्ठसु लोगंतियविमाणेसु अट्ठविह लोगंतिया देवा परिवसंति, तं जहा -
सारस्सयमातिच्चा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य।
तुसिया अव्वाबाहा अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य॥२॥ [३६] इन आठ लोकान्तिक विमानों में अष्टविध (आठ जाति के) लोकान्तिक देव निवास करते हैं। वे (आठ प्रकार के लोकान्तिक देव) इस प्रकार हैं - (१) सारस्वत, (२) आदित्य, (३) वह्नि, (४) वरुण, (५) गर्दतोय, (६) तुषित, (७) आग्नेय और (८) रिष्ट देव (बीच में)।
३८. कहि णं भंते ! सारस्सता देवा परिवसंति ? गोयमा ! अच्चिम्मि विमाणे परिवसंति। [३७ प्र.] भगवन् ! सारस्वत देव कहाँ रहते हैं ? [३७ उ.] गौतम ! सारस्वत देव अर्चि विमान में रहते हैं। ३८. कहि णं भंते ! आदिच्चा देवा परिवसंति ?
१. 'जाव' पद से यहाँ वैरोचन से लेकर सुप्रतिष्ठाभ विमान तक की वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए।