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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका -एकेन्दिय यक्ष्म, एकेन्दिय बादर, टीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय. चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय असैनी और पञ्चेन्द्रिय सैनी सप्तविध संसार में । सप्तविध संसार बढ़ाने वाला कार्य नहीं करना चाहिये और यदि करें तो आलोचना करनी चाहिये।
-पांच स्थावर और एक बस रूप छहकाय के जीवों में। स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण ५ इन्द्रियों में ।
-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये ५ महाव्रतों में |
-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात रूप पाँच प्रकार चारित्र में |
-आहार, भय, मैथुन और परिग्रह चार प्रकार संज्ञा में । -मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग चार प्रकार के आस्रव में ।
चार प्रकार के उपसर्ग-देवकृत, मनुष्यकृत, तिर्यंचकृत और अचेतनकृत चार प्रकार के उपसर्ग में। ___ पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पञ्चेन्द्रिय निरोध, षट् आवश्यक और सप्तशेष गुण-२८ मूल गुणों में ८४ लाख उत्तर गुणों में।
स्त्री पुरुषों के अंगोपांग को देखने की अभिलाषा रूप दृष्टि क्रिया में । स्त्री पुरुषों के अंग-उपांगों को अनुरागपूर्वक स्पर्श करने की इच्छा रूप पुष्टि क्रिया में | क्रोधादि कषायों से उत्पन्न दुष्ट मन-वचन-काय संबंधी प्रादोषिकी क्रिया में । दुष्ट मन-वचन-काय से दूसरों को पीड़ा पहुँचाने रूप पारतापिकी क्रिया में । क्रोध से या मान से या माया से या लोभ से या राग से या द्वेष या मोह से या हास्य से या भय से या अपराध से या प्रेम से या पिपासा से या लज्जा से या गारव/गौरव से इन नतों की जो भी विराधना/अवहेलना/ अत्यासादना/आसादना हुई हो [ मैं सब पापों की आलोचना करता हूँ]
पुण्य पाप से जीवों को लिप्त करने वाली कृष्ण, नील, कापोत लेश्या रूप प्रवृत्ति और पीत, पद्म शुक्ल लेश्या रूप अप्रवृत्ति ।
तीन गारव-रस गारव, ऋद्धि गारव और सात गारव में ।