Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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अतएव 'सिद्धिविनिश्चयटीका' के रचयिता अनन्तवीर्यका समय पूर्वोक्त ई० सन् ९७५-१०२५ घटित होता है ।
रचनाएँ
रविभद्रशिष्य अनन्तवीर्य की दो रचनाएँ हैं- सिद्धिविनिश्चयटीका और प्रमाण संग्रह भाष्य या प्रमाणसंग्रहालङ्कार ।
सिद्धिविनिश्चयटीका
यह अकल देवक "सिद्धिविनिश्चय पर लिखी गयी विशाल टीका है । अनन्तवीर्य ने अपनी इस टीकामें मूलके अभिप्रायको विशद और पल्लवित किया है। साथ हो बीच-बीचमें प्रकरणगत अर्थको स्वरचित श्लोकों में भी व्यक्त किया है, जिससे पाठकको दर्शनशास्त्र के इस ग्रन्थका अध्ययन करते हुए कहीं-कहीं मणिप्रबालकी तरह गद्य-पद्यमय चम्पूकाव्यका आनन्द आ जाता है । कितने ही नये प्रमेयों को भी इसमें चर्चा समाहित है । इस टीकासे अनन्तवीर्यको बहुज्ञता प्रकट होती है । प्रमाण संग्रह्भाष्य
इनका दूसरा ग्रन्थ प्रमाण संग्रहभाष्य या प्रमाणसंग्रहालङ्कार है । यह अकलङ्कदेवके प्रमाणसंग्रहकी टीका है। इसका उल्लेख सिद्धिविनिश्चयटीका में किया गया है । अतः यह उससे पूर्व रची गयी है । परन्तु यह अभी तक प्राप्त नहीं है, केवल इसके अस्तित्वके निदेश ही मिलते हैं ।
माणिक्यनन्दि
आचार्य माणिक्यनन्दि जैन न्यायशास्त्रके महापण्डित थे । इनका परीक्षामुखसूत्र जैन न्यायशास्त्रका आद्य न्यायसूत्र है । इसके स्रोतका निर्देश करते हुए प्रमेयरत्नमालामें कहा गया है
अकलयुवचोऽम्भोधेरुद्द येन धीमता । न्यायविद्यामृतं तस्मै नमो माणिक्यनन्दिने । '
अर्थात् जिस धीमान्ने अकलङ्घदेवके वचन -सागरका मन्थन करके 'न्यायविद्यामृत' निकाला, उस माणिक्यनन्दिको नमस्कार है ।
माणिक्यनन्दि नन्दिसंघ के प्रमुख आचार्य थे । धारानगरी इनकी निवासस्थली रही है, ऐसा प्रमेय रत्नमालाकी टिप्पणी तथा अन्य प्रमाणोंसे अवगत होता है।
१. प्रमेयरत्नमाला ११२ ।
२. प्रमेयरत्नमाला, टिप्पण पू० १ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४१