Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 442
________________ प्रशस्तिका निर्माणकाल वि० सं० १४९३ है । अतएव मलयकीर्तिका समय विक्रमकी १५वीं शताब्दी है । मलयकीर्तिने एलदुग्गके राजा रणमलको उपदेश देकर तरसुम्बामें मूलसंघका प्रभाव कम किया तथा शान्तिनाथको विशाल मूर्ति स्थापित की। बताया है " तत्पट्टे भ० श्रीमलयकोतिदेवानां निजबोधनशक्तितः एलदुग्गाधीश्वर राजश्री रणमल्ल प्रतिबोध्य तरसु बानगरे केकापिछायान हटान् महाकायश्री शांतिनाथस्य प्रासादः कारितः । " मलकीर्ति द्वारा लिखित रचनाओंमें केवल मूलाचारको प्रशस्ति ही अभी तक उपलब्ध है । इस प्रशस्तिके प्रारम्भ में ही लिखा है 'मूलाचार पुस्तकस्य प्रशस्ति चकार मलयकीतिः' तथा अन्तिम पद्मोंमें धर्मकीर्ति और उनके शिष्योंका परिचय भी इन्होंने लिखा है। बताया हैश्रीधर्मकीर्ति बने प्रसिद्धिस्तत्पट्ट रत्नाकरचंद्र रोचिः । षट्तकत्ता गतमानमायक्रोधारिलोभोऽभवदत्र पुण्यः ॥ तस्य पादसरोजालिगु णमूर्तिर्विचक्षणः । मलयोत्तरकीतिर्वा मुदं कुर्याद्दिगम्बरः ।। हेमकी तिगुणज्येष्ठो ज्येष्ठो मत्तः कुशाग्रधीः । धर्मध्यानरतः शान्तो दान्तः सुनृतवाग्यमी ॥ ततोऽनुजी मुनींद्रस्तु सहस्रो त्तरकीर्तियुक् । गुर्जरीं जगतीं शास्तो द्वौ यती महिमोदयौ ॥ वयं त्रयोऽपि धीमन्तः साधीयांसो निरेनसः । धर्मकी भगवतः शिष्या इव रेवः करः ॥ श्रुतकीर्ति भट्टारक श्रुतकीर्ति नन्दिसंघ बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छके विद्वान् हैं | यह भट्टारक देवेन्द्रकीर्तिके प्रशिष्य और त्रिभुवनकोर्तिके शिष्य थे । श्रुतकीर्ति सुलेखक, चिन्तक और प्रभावक विद्वान् हैं । इन्होंने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है। श्रुतकीर्तिका समय उनकी रचनाओंके आधारपर विक्रम संवत्को १६वीं शती सिद्ध होता है । इनकी रचनाओंमें हरिवंशपुराण सबसे बड़ा है । जैन सिद्धान्तभवन आरामें उसकी पाण्डुलिपि वि०सं० १५५३की है, जो मण्डपाचलदुर्ग के १. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ६३९ । २. अनेकान्त, वर्ष १३, किरण ४, पृ० ११०, श्लोक २१–२५ । ४३० : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्यपरम्परा

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