Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 465
________________ द्वितीय खण्डको उन्होंने वि०सं० १८८' में पूर्ण किया है। इसके पश्चात् ललितकीतिने तृतीयखण्डमें उत्तरपुराणको टीका रची है। ललितकीतिके नामसे अनेक रचनाएं उपलब्ध हैं। पर यह नहीं कहा जा सकता कि ये सभी रचनाएँ इन्हीं ललितकीति की हैं या दूसरे ललितकीति की। मलितहीनिक समान विकी १९नी वाटी निश्चित है। श्री पण्डित परमानन्दजी शास्त्रीने ललितकोतिके नामसे निम्नलिखित २४ रचनाओंका निर्देश किया है १. सिद्धचक्रपाठ, २. नन्दीश्वरव्रत कथा, ३. अनन्तव्रत कथा, ४. सुगन्वदशमी कथा, ५. षोडशकारण कथा, ६. रत्नत्रयव्रत कथा, ७. आकाशपञ्चमी कथा, ८. रोहिणीव्रत कथा। ९. धनकलश कथा, १०. निर्दोषसप्तमी कथा, ११. लब्धिविधान कथा, १२. पुरन्दरविधान कथा, १३. कर्मनिर्जरचतुर्दशीव्रत कथा, १४. मुकुटसप्तमी कथा, १५. दशलाक्षणीव्रत कथा, १६. पुष्पाञ्जलिव्रत कथा, १७. ज्येष्ठजिनवर कथा, १८. अक्षयनिधिदशमी व्रत कथा, १९. निःशल्याष्टमी, विधान कथा, २०. रक्षाविधान कथा, २१. श्रुतस्कन्ध कथा, २२. कञ्जिकावत कथा, २३. सप्तपरमस्थान कया, २४. षट्रस कथा। परम्परापोषक आचार्योंके अन्तर्गत भट्टारकोंकी गणना की जाती है। प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४५३

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