Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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शक्तया होनोऽपि वक्ष्येऽहं गुरुभक्तया प्रणोदितः ।
श्रीभद्रबाहचरित यथा ज्ञातं गुरूक्तित्तः ॥ रत्ननन्दीका यह ग्रन्थ पुराणशैलीमें लिखा गया है, जिससे अध्येताओंका मन सहज रूपमें रम जाता है। चन्द्रगुप्त और भद्रबाहुके इतिहास प्रसिद्ध आख्यानको मागमें स्थान दिया गया है !
श्रीभूषण थीभूषण नामके दो भट्टारकोंका परिचय प्राप्त होता है। एक श्रीभूषण भानुकीतिके शिष्य हैं। पट्टावलीमें इनका परिचय देते हुए लिखा है
"संवत् १७०५ आश्विन सुदी ३ श्रीभूषणजी गृहस्थ वर्ष १३ दीक्षा वर्ष १५ पट्ट वर्ष ७ पाछे धर्मचन्द्रजी नै पट्ट दियो पार्छ १२ वर्ष जीया संवत् १७२४ ताई जाति पाटणी पट्ट नागौर"।। ___अर्थात् वि०सं० १६९०में भानुकोति पट्टारूढ़ हए और १४ वर्ष तक पट्ट पर आसीन रहे। इनके शिष्य भट्टारक श्रीभूषण वि०सं० १७०५ आश्विन शुक्ला तृतीयाको पट्टाधीश हुए और १९ वर्ष तक पट्ट पर प्रतिष्ठित रहे। इनका गोत्र पाटणी था। पद प्राप्तिके ७ वर्षके पश्चात वि०सं० १७१२ चैत्र शुक्ला एकादशीको अपने शिष्य धर्मचन्द्रको भट्टारक पद पर प्रतिष्ठित किया था।
दूसरे थीभूषण विद्याभूषणके शिष्य हैं। ये काष्ठासंघी नन्दीतटगच्छके आचार्य थे। संवत् १६३४ में श्वेताम्बरोंके साथ इनका विवाद हुआ था, जिसके परिणाम स्वरूप श्वेताम्बरोंको देश त्याग करना पड़ा था । इनके पिताका नाम कृष्णशाह और माताका नाम माकुही था। __ "माकुही मात कृष्णासाह तात श्रीभूषण विख्यात दिन दिनह दिवाजा वादीगजघट्ट दीयत सुथट्ट न्यायकुहट्ट दीवादीव दीपाया।"
इन्होंने वादीचन्द्रको बादमें पराजित किया था।
श्रीभूषणको उपाधि षभाषाविचक्रवर्ती थी। ये सोजिना ( भंडौंच ) को काष्ठासंघकी गद्दीके पट्टधर थे। श्रीभूषणके शिष्य भट्टारक चन्द्रकीर्ति द्वारा विरचित पाचपुराण ग्रन्थ उपलब्ध है। इस गन्यमें चन्द्रकीर्तिने अपने १. भद्रबाहुचरिवम् , श्लोक ६ । २. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक २९१ । ३. वही, लेखांक ६८१ । ४. वही, लेखांक ६८८ ।
प्रयुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४३९