Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 455
________________ त्याग करना पड़ा। इन्हीं श्रीभूषणके प्रधान शिष्य ब्रह्म ज्ञानमागर हुए। इनके सम्बन्धमें इन्हींके द्वारा रचित अक्षरबावनीसे ज्ञात होता है कि काष्ठासंघ नन्दितटगच्छमें रामभेन मुनि हुए और उन्हीं की परम्परामें श्रीभूषणके शिष्य ब्रह्म ज्ञानसागर हुए 1 दशलक्षणकथाकी प्रगस्तिमें लिखा है भट्टारक श्रीभूषणवीर । तिनके चेला गुणगंभीर ।। ब्रह्म ज्ञानसागर सुविचार 1 कही कशा दशलक्षणसार' || ब्रह्म ज्ञानसागरका समय वि० सं० को १७वीं शती है ! इन्होंने निम्नलिखित रचनाएँ लिखी हैं १. अक्षरबावनी। २. नेमिधर्मोपदेश। ३. नेमिनाथपूजा। ४. गोम्मटदेवपूजा। ५. पालनागपूजा ! ६. जिनचौबीसी। ७. द्वादशीकथा। ८. दशलक्षणकथा। ९. राखीबन्धनरास । १०, पल्लीविधानकथा । ११. निःशल्याष्टमीकथा। १२. श्रुतस्कन्धकथा। १३, मोनएकादशीकथा । ये सभी रचनाएं भाषा और भावकी दृष्टिसे साधारण हैं । नेमिधर्मोपदेश हिन्दीमें तथा नेमिनाथपूजा, गोम्मटदेवपूजा और पार्श्वनाथपूजा संस्कृतमें लिस्त्री गयो हैं । शेष सभी मन्थ हिन्दी भाषामें हैं। सोमसेन सोमसेन सेनगण और पुष्कर गच्छकी, भट्टारकपरम्परामें हुए हैं। ये गुणभद्र भट्टारकके शिष्य थे । गुणभद्रका नामान्तर गुणसेन भी था। सोमसेनके सम्बन्ध में पट्टावलीमें पाया जाता है "विबुधविविधजनमनइंदीवरविकासनपूर्णशशिसमानानां ............ सीमसेनभट्टारकाणाम् ।" १. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ७.२ । २. वही, लेखांक ३४। प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४४३

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