Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 444
________________ १. हरिवंशपुराण, २. धर्मपरीक्षा, ३. परमेष्ठीप्रकाशसार, ४. योगसार। १. हरिवंशपुराण हरिबंशपुराण बृद्काय रचना है । इसमें ४७ सन्धियाँ हैं और २२वें तीर्थकर भगवान् नेमिनाथका जीवनचरित अंकित है। प्रसंगवश इसमें श्रीकृष्ण आदि यदुवंशियोंका संक्षिप्त जीवन परिचय भी आया है। यह ग्रन्थ काव्य, सिद्धान्त, आचार आदि सभी दृष्टियोंसे महत्त्वपूर्ण है। २. धर्मपरीक्षा ___ इस ग्रन्थमें १७९ कड़वक हैं । इसमें पौराणिक मान्यताओंकी व्यंग्यशैलीमें समीक्षा की गयी है। ३. परमेष्ठीप्रकाशसार ___ इस ग्रन्थकी पाण्डुलिपि आमेर-भण्डारमें सुरक्षित है। इसमें तीन हजार पद्य हैं और ग्रन्थ सात्त परिच्छेदोंमें विभक्त है। ४. योगसार ___ यह प्रन्थ दो परिच्छेदों या सन्धियोंमें विभक्त है। इसमें गृहस्थोपयोगी सैद्धान्तिक बातोपर प्रकाश डाला गया है। साथ ही कुछ मुनिचर्याका भी उल्लेख किया है। श्रुतकोत्ति अपने समयके उद्भट विद्वान् थे और ग्रन्धरचना करने में प्रवीण थे। धर्मकीर्चि भट्टारक परम्परामें धर्मकीसि नामके चार भट्टारकोंका निर्देश प्राप्त होता है। एक धर्मकीर्ति त्रिभुवनकोतिके शिष्य हैं, जिनका निर्देश मलयकीर्तिके प्रसंगमें किया जा चुका है। दूसरे धर्मकीति बलात्कारगण नागौर शाखामें भवनकीतिके शिष्य है। इन धर्मकीतिक सम्बन्धमें पट्टावलीमें बताया गया है कि ये वि०सं० १५९० चैत्र कृष्णा सप्तमीको पट्टारूढ़ हुए और दश वर्ष तक पट्टपर रहे। ये जातिसे सेठी थे। वि०सं० १६०१की फाल्गुन शुक्ला नवमीको इन्होंने एक चन्द्रप्रभकी मूर्ति स्थापित की थी। बताया है "संवत् १५९० चैत्र वदि ७ भ० धर्मकीतिजी गृहस्थ वर्ष १३, दीक्षा वर्ष ३१, पट्ट वर्ष १०, मास १, दिवस २०, अंतर मास १, दिवस १०, सर्व वर्ष ४३२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा

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