Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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संवत् १६७१ आश्विन कृष्णा पञ्चमी रविवार के दिन पूर्ण हुआ है । ग्रन्थरचनाके कालका उल्लेख करते हुए बताया है
वर्षे द्व्यष्टशते चैकाग्रसप्तत्यधिके रवी । आश्विने कृष्णपंचम्यां ग्रंथोय रचितो मया ॥
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इससे स्पष्ट है कि धर्मकीर्तिका समय वि० की १७ वीं शताब्दी है । इन धर्मकीर्ति उपदेशसे वि०सं० १६८१ माघ शुक्ला पूर्णिमा गुरुवार के दिन पार्श्वनाथकी मूर्ति प्रतिष्ठित की गयी थी और इन्हीके उपदेशसे वि०सं० १६८२ मार्गशीर्ष वदीको षोडशकारणयन्त्रको प्रतिष्ठा की गयी है । अतएव धर्मकीर्तिका यश जैनसंस्कृतिके प्रचार और प्रसारकी दृष्टिसे भी कम नहीं है ।
धर्मकीतिकी दो रचनाएँ उपलब्ध हैं- पद्मपुराण और हरिवंशपुराण | पद्मपुराणकी रचना रविषेणके पद्मचरितके आधारपर की गयी है। मूल कथामें कुछ भी परिवर्तन नहीं किया है ।
हरिवंशपुराण में भी रखें तीर्थंकर नेमिनाथका चरित अंकित है । रचनाओमें मौलिकताको अपेक्षा अनुकरण ही अधिक प्राप्त होता है ।
भद्रबाहुचरितके रचयिता रत्नकीर्ति या रत्ननन्दी
जैन साहित्य में रत्नकीति नामके आठ आचार्य उपलब्ध हैं। एक रत्नकीर्ति अभयनन्दीके शिष्य हैं। इनका समय वि० की १७वीं शती है । ये बलात्कारगण सूरत शाखाके आचार्य थे । तीर्थंकर महावीरके निम्नलिखित मूर्तिलेखसे इनका संक्षिप्त परिचय प्राप्त होता है-
"सं० १६६२ वर्षे वैसाख वदो २ शुभदिने श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ० श्री अभयचन्द्रदेवाः तत्पट्टे भ० श्री अभयनन्द तच्छिष्य आचार्य श्रीरत्नकीर्ति तस्य शिष्याणी बाई वीरमती नित्यं प्रणमति श्रीमहावीरम्"। इस अभिलेखसे स्पष्ट है कि मूलसंघ सरस्वत्तीगच्छ बलात्कारगण कुन्दकुन्दाचार्यान्वयमें रत्नकीर्ति हुए हैं । इनके गुरुका नाम अभयनन्द और दादागुरुका नाम अभयचन्द्र है ।
दूसरे रत्नकीति जिनचन्द्रके शिष्य हैं। बलात्कारगण नागौर शाखाका आरंभ भट्टारक रत्नकीर्तिसे होता है। ये जिनचन्द्रके शिष्य थे। इनका पट्टाभिषेक वि० सं० १५८१ श्रावण शुक्ला पञ्चमीको हुआ था । तथा आप २१ वर्षों तक पट्टपर आसीन रहे । पट्टावलीमें बताया है---
१. सं० स०, लेखांक, ५२९ 1
२. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ५२२ ।
४३४ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा