Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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शुभकोतिदेव मट्टारक, धर्मभषण प्रथम, अमरकीतिप्राचार्य, धर्मभूषण द्वितीय और वर्द्धमानस्वामीके नाम आये हैं । इन दोनों अभिलेखोंका तुलनात्मक अध्ययन करनेसे धर्मभूषण, अमरकोति, धर्मभूषण द्वितीय और वर्द्धमान मुनि ये नाम समानरूपसे आते हैं। इस तुलनासे यह भी स्पष्ट है कि शक संवत् १२९५के पश्चात् तृतीय धर्मभूषण जिनका नाम अभिनव धर्मभूषण है हुए होंगे। श्रवण बेलगोलाके अभिलेखसे यह स्पष्ट है कि शक संवत् १२९५के पश्चात् ही अभिनव धर्मभूषणको भट्टारक पद मिला होगा। स्थितिकाल
अभिनव धर्मभूषणको निश्चित तिथिका परिज्ञान नहीं है 1 डॉ० प्रो० होरालालजीने द्वितीय धर्मभूषणको निषद्याके निर्माणका समय शक संवत् १२९५ बतलाया है । डॉ० दरबारालाल कोठियाने लिखा है कि 'केशवव को अपनी गोम्मटसारकी जीवतत्त्वप्रदीपिका नामक टोका लिखने की प्रेरणा एवं आदेश जिन धर्मभुषणसे प्राप्त हुआ, वे धर्मभूषण हो द्वितीय धर्मभुषण होंगे । इनके पट्टका समय यदि २५ वर्ष भी हो, तो पट्टारूढ़ होनेका समय शक संवत् १२७० पहुंच जाता है । केशववर्णीने अपनी उक्त टोका शक संवत् १२८१में पूर्ण को। इतनी विशाल टोकाको लिखने में ११ वर्षका समय लगना सम्भव है । अतएव प्रथम और तृतीय धर्मभूषण केशववर्णीके प्रेरक नहीं हो सकते हैं। तृतीय धर्मभूषण जीवतस्वप्रदीपिकाके समाप्तिकालसे लगभग १९ वर्ष पश्चात् गरुपट्टके अधिकारी हुए जान पड़ते हैं । अतएव टोकाकी प्रेरणाके समय उनका अस्तित्व ही न रहा होगा। प्रथम धर्मभूषण भी टोकाके प्रेरक नहीं हो सकते, क्योंकि इनका पट्टकाल सम्भवतः शक संवत् १२२०-१२४५ होना चाहिये । अतएव द्वितीय धर्मभूषणको ही केशववर्गीका प्रेरक माना जा सकता है।'
तृतीय धर्मभूषण शक संवत् १२९५-१३०७के मध्य किसी भी समय अपने गुरु वर्द्धमान भट्टारकके पदपर आसीन हुए हैं। यदि पट्टपर आसीन होनेके समय इनको अवस्था.२० वर्ष भी मानी जाये, तो जन्मतिथि शक संवत् १२८० (ई० सन् १३५८)के लगभग आती है। इसकी पुष्टि विजयनगर साम्राज्यके अभिलंखोंसे भी होती है। इस साम्राज्यके स्वामी प्रथम देवराय और उनकी पत्नी भीमादेवो वखमान गुरुके शिष्य धर्मभूषणके परम भक्त थे तथा उन्हें अपना गुरु मानते थे । पद्मावती बस्तीके एक अभिलेखसे अवगत होता है कि राजाधिराज परमेश्वर देवराय प्रथम व मान मुनिके शिष्य धर्मभूषण गुरुके
१. न्यायबीपिका, प्रस्तावना, पृ० ९२-९७ ।
३५६ : सीपंकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा