Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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मनोरमा पूर्वभव, नवममें द्वादशानुप्रेक्षा, दशममें सुदर्शनका दीक्षा ग्रहण और तप, एकादशमें केवलज्ञानोत्पत्ति और द्वादशमें सुदर्शनमुनिकी मोक्षप्राप्तिका वर्णन आया है । समस्त ग्रन्थ अनुष्टुप छन्दोंमें निर्मित है । सर्गान्तिमें छंदपरिवर्तन हुआ है । कविने प्रसंगवश सुभाषितोंका भी प्रयोग किया है। पुण्यका माहात्म्य बतलाते हुए लिखा है
पुण्येन दूरतरवस्तुसमागमोऽस्ति
पुण्यं बिना तदपि हस्ततलात्प्रयाति । तस्मात्सुनिर्मलधियः कुरुत प्रमोदात् पुष्पं जिनेन्द्रकथितं शिवशर्मंश्री जम्' ॥
इस प्रकार सुदर्शनचरितके द्वारा कविने पुराण, धर्मशास्त्र और दर्शनका प्रणयन किया है। इस ग्रन्थकी कुल श्लोकसंख्या १३६२ है ।
भट्टारक भलिभूषण
विद्यानन्दिके पट्टशिष्यों में मल्लिभूषणको गणना की जाती है । इन्होंने वि० संवत् १५४४ को वैशाख शुक्ला तृतीयाको खम्भात में एक निषदिका बनवायी थी । इस निषदिकापर जो अभिलेख प्राप्त हुआ है, उससे आर्यिका रत्नश्री, कल्याणश्री ओर जिनमतोका परिचय प्राप्त होता है । यह अभिलेख आर्थिकी मूर्तिपर उत्कीर्ण है
"सं० १५४४ वर्षे वैशाख सुदी ३ सोमे श्रीमूलसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे भ० श्रीविद्यानन्ददेवा: तत्पट्टे भ० श्रीमल्लीभूषण श्रीस्तंभतीर्थे हुंबड ज्ञातेय श्रेष्ठी चांपा भार्या रूपिणी तत्पुत्री श्रीअजिका रत्नसिरी क्षुल्लिका जनमती श्रीविद्यानंदीदीक्षिता आर्जिका कल्याणसिरी तत्त्वल्ली अग्रोतका ज्ञातो साहदेवा भार्या नारिंगदे पुत्री जिनमती नस्सही कारापिता प्रणमत श्रेयार्थम्" ।
मल्लि भूषण गोपालकी यात्रा की थी और गयासुद्दीन के द्वारा सम्मान प्राप्त किया था। महिलभूषण पद्मावती के उपासक थे । पट्टावलीमें इनके वादी होने का भी निर्देश मिलता है । मल्लिभूषणते धर्मोपदेश, शास्त्रार्थ आदिके द्वारा धर्मकी प्रभावना की थी। बताया है
१. सुदर्शनचरित, डा० दीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, सन् १९७०, श्लोक
४|१०६ ।
२. मट्टारक सम्प्रदाय, शोलापुर, लेखांक ४५८ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३७३