Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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स्थितिकाल
ध्रुतसागरने अपने किसी भी ग्रन्थमें रचनाकाल अंकित नहीं किया है, किन्तु अन्य आधारोंसे उनके समयका निर्णय किया जा सकता है ।
१. पद्मनन्दिके शिष्य देवेन्द्रकीतिका एक अभिलेख देवगढ़म है, जिसपर सं० १४९,३ अंकित है। ये देवेन्द्र कीर्ति श्रुतसागरके दादागुरु' थे।
२. सुरतके एक मूर्ति-अभिलेखमें संवत् १४९९ और एकमें संवत् १५१३ अंकित है । ये दोनों मतियाँ देवेन्द्रकोतिके शिष्य विद्यानन्दिके उपदेशसे प्रतिष्ठित हुई थीं। विद्यानन्दिके उपदेशसे प्रतिष्ठित अन्य मूर्तियोंपर वि० सं० १५१८, १५२१ और १५३७ अंकित है।
३. सूरतमें पद्यावतीको एक मूर्तिपर वि० सं० १५४४ अंकित है। उस समय विद्यानन्दिके पट्ट पर मल्लिभषण विराजमान थे। इन्हीं मल्लिभूषणके उपदेशसे श्रुतसागरने कुछ कथाएँ लिखी हैं और ये श्रुतसागरके गुरुभाई थे । ___ ४. ब्रह्मनेमिदत्तने अपने आराधनाकथाकोशको प्रशस्तिमें विद्यानन्दिके पट्टयर मस्लिभूषण और उनके शिष्य सिंहह्नन्दिका गुरुरूपमें स्मरण करके श्रुतसागरका जयघोष किया है । इससे ध्वनित होता है कि वे उस समय जीवित थे। इन्हीं ब्रह्मनेमिदत्तने वि० सं० १५८५में श्रीपालचरितकी रचना की है और उसमें श्रुतसागरसूरि द्वारा रचित 'श्रीपालचरित'का निर्देश करते हुए इनको पूर्वसूरि तथा उनके द्वारा 'श्रीपालचरित'को पुरारचित कहा है। इससे ज्ञात होता है कि उस समय श्रुतसागरका देहावसान हो चुका था।
५. पल्लिविधानकथाको प्रशस्तिसे भी श्रुतसागरका समय वि० सं० १५०२१५२२ तक आता है। विद्यानन्दि और मल्लिभूषणके पट्टकालों पर विचार करनेसे भी श्रुतसागरका समय वि० सं० १५४४-१५५६ आता है। इस प्रकार भट्टारक श्रुतसागरसूरिका समय वि० को १६वीं शताब्दी है।
१. भट्टारक सम्प्रदाय, सोलपुर, लेखांक ४२५ । २. वही, लेखांक ४२५ । ३. वही, लेखांक ४५८ । ४. वही, लेखांक ४६६ । ५, जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह, विल्ली, प्रथम भाग, पु० १७ । ६. भट्टारक सम्प्रदाय, सोलापुर, लेखांक ४६३ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३१३