Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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ये ज्ञानभूषण भट्टारकके शिष्य थे। प्रभाचन्द्र भट्टारवाने इन्हें आचार्यगद प्रदान किया था। कर्नाटकके जैन गजा मल्लिभूपालक भक्तिवश इन्हें मुनिचन्द्रने सिद्धान्तशास्त्रका अध्ययन कराया था। श्रीलालावीके आग्रहसे ये गुर्जर देशसे आकर चित्रकूट जिनदास शाह द्वारा निर्मापित चैत्यालयमें ठहरे थे । यहां इन्होंने सूरिधी धर्मचन्द्र, अभयचन्द्र भद्रारक और लालावी आदि भव्य जीवोंके लिए खण्डेलवाल वंशके शाह साँगा और शाह सहेसकी प्रार्थनागर कर्नाटकीय बृत्तिके अनुसार जीवतत्त्वप्रदीपिकावृत्ति लिखी । इसकी रचनामें विद्यविद्यात्रिख्यातविशालकीर्तिसग्नेि सहायता की और उसे प्रथम बार हर्षपूर्वक पड़ा | अविध चक्रवती निग्रंन्याचार्य अभयचन्द्र ने उसका संशोधन करके उसकी प्रथम प्रति तैयार को श्री ।
अतः उपर्युक्त प्रशस्तिके अनुसार केदाबवर्गीकी कम्मड़ टोकाके आधारपर जीवाचप्रदीपिका टीकाके रचयिता नेमिचन्द्र हैं। इस टोकाके अन्तमं जो सन्धिवाक्य आते हैं, उनमें भी नेमिचन्द्रका उल्लेख है। यथा---'इत्याचार्यथोनेमिचन्द्रकृतायां मोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ'–यहाँ 'नेमिचन्द्रकृत्तायायां' यतिका विज्ञपण है, गोम्मटमारका नहीं। अतएव यहाँ गोम्मटसारके रचयित्ता आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीका भ्रम नहीं होना चाहिये ।
टीकाके प्रारम्भमें जो मंगलाचरण किया गया है, वह भी नेमिचन्द्र टीका. कारको सूचित करता है। टीकाकारने यहाँ श्लेप द्वारा अपना और अपने गुरुका नाम प्रस्तुत किया है । यथा
नेमिचन्द्रं जिन नरवा सिद्ध श्रीज्ञानभूषणम् ।
वृत्ति गोम्मटसारस्य कुर्वे कर्णाटवृत्तितः ॥ केशववर्णीने गोम्मटसारकी कर्नाटकवृत्ति लिखी है। इस वृत्तिका नाम भी जीवतत्त्वप्रदीपिका है। केशववर्णीको ही कुछ लोग संस्कृत जीवतत्त्रप्रदीपिकाका रचयिता मानते हैं। पर डॉ० ए० एन० उपाध्येने केशबवर्णीको कन्नन टीका बत्तलायी है और इस टीकाके आधारपर नेमिचन्द्रने संस्कृत्तमें जीवतत्त्वप्रदीपिका टीका लिखी है। कर्नाटकवृत्ति के रचयिता केशववर्णीके गुरु अभयचन्द्र सूरि सिद्धान्तचक्रवर्ती थे। इन्होंने गोम्मटसारको वृत्ति शक संवत् १२८१ । वि०सं० १४१६ )में पूर्ण की है । स्थितिकाल
वृत्तिकार नेगिचन्द्रने अपनी प्रशस्तिमें समयका निर्देश नहीं किया है। केशवत्रीने अपनी कर्नाटक वृत्तिको शक संवत् १२८१ ( वि०सं० १४१६)में १. अनेकान्त वर्ष ४, किरण १, पृ० ११३ । ४१६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा