Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 435
________________ पत्र भोतिके सहारक होनेयः, यही समय दिया है। लिखा है-"पीछे संवत् १६१३ वर्षे जसकीति ये वागड़ माहे गाम भीलोडे काल करयो तेणानेपाटे गाम सावले पछोरी खाता पछोरी छा छादी समस्त संघ मीली आचार्य गुणचन्द्र स्थापना करवाने" । अतएव भट्टारक गुणचन्द्रका समय वि० सं० १६१३-१६५३ है। रचनाएं भट्टारक गुणचन्द्रकी संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओंमें रचनाएं पायी जाती हैं | इनको निम्नलिखित रचनाएं उपलब्ध हैं--- १. अनन्तनाथपुजा ( संस्कृत ) २. मौनवतकथा , ३. दयारसरास (हिन्दी) ४. राजमतिरास ५. आदित्यव्रतकथा ६. बारहमासा ७. बारहवत ८. विनती ९. स्तुति नेमिजिनेन्द्र .. १०. ज्ञानचेतनानुप्रेक्षा , ११. फुटकर पद , अनन्तनाथपूजा-कविने इसे वि० सं० १६३० में हुम्मड़वंशी सेठ हरग्लुचन्द दुर्गादास नामक वणिककी प्रेरणासे सागवाड़ाके आदिनाथ मन्दिर में रहकर उन्हींके व्रत-उद्यापनार्थ रचना की गयी है। इस रचनामें अनन्तनाथ भगवानकी पूजा और बिधि अंकित है । इस पूजाके अन्तमें कृतिका रचनाकाल एवं कविने अपनी गुरुपरम्परा अंकित की है। लिखा है संवत् षोडशत्रिशतैष्यपलके पक्षेवदाते तिथौ पक्षत्यां गुरुवासरे पुरजिनेट श्रीशाकमार्गे पुरे । श्रीमन्दु बड़वंशपद्मसविता हर्षास्यदुर्गी वणिक् सोयं कारितवाननंतजिनसत्पूजां बरे वाग्वरे ।। मौनव्रतकथा-मौनवत्तकथामें मौनव्रतका महत्त्व बतलानेके लिए कथा १. जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १६, किरण २, पृ० ११४ । २. अनेकान्त, वर्ष १७, किरण ४, पृ० १८९ । ३. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ४०४ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४२३

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