Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 438
________________ ७वें नरेन्द्रसेन सेनगण पुष्करगण्छकी गुरुपरम्परामें छत्रसेन के पट्टाधिकारी हुए हैं । इन्होंने शक संवत् १६५२ में कमलेश्वर ( नागपुर ) के एक जिनमन्दिर में ज्ञानयंत्रकी प्रतिष्ठा करायी थी । श्रीमज्जैनमते पुरन्दरनुते श्रीमूलसंघे वरे श्रीशूरस्थगणे प्रतापसहिते सभूपवृन्दस्तुते | गच्छे पुष्कर नामके समभवत् श्रीसोमसेनो गुरुः तत्पट्टे जिनसेनसम्मतिरभूत धर्मा मतादेशकः ||१|| तज्जोऽभूद्धि समन्तभद्रगुणवत्तु शास्त्रार्थ पारंगतः तत्पट्टोदयतर्कशास्त्रकुशलो ध्यानप्रमोदान्वितः । मद्विद्यामृतवर्षणैकजलद: श्रीछत्रसेनो गुरुः तत्पट्टे हि नरेन्द्रसेनचरणी संपूजयेऽहं मुदा ॥२॥ इस उद्धरण से स्पष्ट है कि इसमें छत्रसेनको 'तर्कशास्त्रकुशल' और दादागुरु समन्तभद्रको 'शास्त्रार्थपारंगत ः ' कहा गया है । अतएव छत्रसेनके शिष्य नरेन्द्रसेन तर्कशास्त्री विद्वान् थे | इनके एक शिष्य अर्जुनसुत सोयराने शक संवत् १६७३ में 'कैलास उप्पय'की रचना की है, जिसमें इन्हें 'वादिविजेता' और सूर्य के समान 'तेजस्वी' कहा गया है । तस पट्टे सुखकारनाम भट्टारक जानो । नरेन्द्रसेन पट्टधार तेजे मार्त्तण्ड बखानो । जीतो बाद पवित्र नगर चम्पापुर माहे । करियो जिनप्रासाद ध्वजा गगने जइ सोहे ||२६|| प्रमाणप्रमेयकलिका इन्हीं छत्रसेन के शिष्य नरेन्द्रसेन की है । 'यशोधरचरित' और 'नरेन्द्रसेनगुरुपूजा' में अंकित इनकी गुरुपरम्परामें सोमसेन, जिनसेन, समन्तभद्र, छत्रसेन और नरेन्द्रसेन के नाम आते हैं । काष्ठासंघ - मन्दिर, अंजनगांवको विरुदावलीमें विस्तृत गुरुपरम्परा मिलती है— "निखिलतार्किकशिरोमणि श्रीसोमसेन - माणिक्यसेन- गुणभद्र-अभिनवसोमसेन भट्टारकाणाम् तत्पट्टे निखिलजन रंजनगुणात्मविद्या निधिश्री जिनसेन भट्टारकाणाम् । तदन्वये श्रीसमन्तभद्र भट्टारकाणाम् तशे श्रीछत्रसेनभट्टारकाणाम् तत्पट्टे श्रीमन्नरेन्द्र सेन भट्टारकाणाम् स्वस्ति श्रीमद्राय राजगुरुश्रीमदभिनव १. नरेन्द्रसेन गुरुपूजा, उद्धत म० सम्प्रदाय, पू० २०, लेखांक ६६ । २. भट्टारक सम्प्रदाय, सोलापुर, लेखांक ६९ । ४१६ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा

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